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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१५ ) यी निज फोज लेई दल गाज । तोपां दोय साथ लियां बहु साज ॥ ३६ ॥ तंबु दोय लार लिये फिरंगाए । जंग नर साथ लिया कोकवाण ॥ तवां बहु लोक कहे महाराज | नही इह कारण कृत्य काज ॥ ३१ ॥ एतो वह जाजल देव कहाय । रहे नहीं लाज तिहारिय काय । तवां फिर बोले सदाशिव जूप | ग्रहां सब माल वां चढीचूप ॥ ३८ ॥ इसोकहित दुष्ट करूर | कीयो नजराणह नाथ हजूर । राख्यो नही नाथ तवे नजराणा । नयो मन चक्कितमान गिलाए ||३|| तवां मन चिंत जंकारी बुलाय । मीठे वच बोल सबे ललचाय । बई संग आय मुकाम मकार । कियो तब कूच लई सब बार ॥ ४० ॥ करे तब गाम पुकार पुकार । जंकारी सबै पुकार पुकार करो अब बाहर नाथ दयाल | गयो किहां आज गरीब निवाज | चढो अब बाहर राखण लाज ॥ ४१ ॥ डुहा ॥ उण समें को सेव को वाइण तारण काज । गये अधिष्ठायक नाथजी । जेरुं गये वहां गाज ॥ ४२ ॥ सुणो अरज पृथ्वी नाथजी सहेर धूलेव मकार । कियो कारज दुष्टने । शीघ्र चले जनतार ॥४३॥ श्राये तुरत महाराजजी । करवा जन संजाल । दो घोने दोनुं चढे । नेरु अरु प्रतिपाल ॥ ४४ ॥ निलकोप कियो । दश दिशि फौज हजार | मार मार चोतरफते । नई लकाई त्यार ॥ ४५ ॥ जुजंग प्रयात बंद कूकू कुकू कुकू हे कोकवां स सएवं तीर तरकस्स वाणं । धुंवाके This as नाल गोला। जिसा कर्कसा जम्मरा नयन मोला ॥ ४६ ॥ किते अंग शस्त्ररा घाव लागे । किते मारतें कंपते For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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