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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६३ ) इंदपय पामे सुंदरि ॥ एहमंत्र सास्वतो जपे अचिंत चिंतामणि एह । समरण पापसबेटले रिद्धि सिधि नियगेह ॥ ॥ निय सिर ऊपरकाण मन्क चिंतवे कमल नर । कंचन मय अघ्दल सहित तिहां मांहे कनकवर ॥ तिहां बेग अरिहंत देव पलमासण फिटकमणि । सेयवत्थ पहरेवि पढम पय चिंते नियमणि ॥ निवारय चनग गमण पामिय सासय सुरक । अरिहंत काणे तुम हो जिम अजरामरमुरक ॥३॥पनर नेय तिहां सिक बीय पद जे बाराहे । राते विद्रुमतणेवन्न निय सोहग साहे ॥ राती धोती पहर जपे सिजहिं पुबदिसि । सयल लोय तिहां नरह होइ तत खिणसें वसि ॥ मूलमंत्रवशी करण अवरसह जगधंछ । मणि मूली औषध करे बुद्धिहीण जाचंध ॥४॥ दक्षिण दिसि पंखमी जपे नमो आयरिआणं । सोवन वन्नह सीस सहित उवए सहनाणं ॥ रिद्धि सिद्धि कारणे लान ऊपर जे ध्यावे। पहरि पीलावा तेह मन वंचिय पावे ॥णं काणे नव निधिदुवे रोग कदे नवि हो । गजरथ हय वर पालखी चामर उत्त सिर जोश्॥ ५॥ नीलवन्न उवज्काय सीस पाढंता पश्चिम । श्रारादिको अंग पुत्र धारंत मणोरम ॥ पश्चिम दिसि पंखमी कमल ऊपर सुह जाणं । जोवो परमानंद तासु गय देव विमाणं ॥ गुरु लघु जेलरके विपुर तिहां नर बहु फल होइ । मनसूधेविण जे जपे तिहां फल सिद्धिन होइ ॥६॥ सर्व साधु उत्तर विनाग सामला वश्ता । जिण धर्म लोय पयासंत चारित गुण जि । मणवयण काएहिं जपे जे एके जाणे । पंचवन्न तिहां नाणकाण गुण एह पमाणे ॥ अनंत For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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