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(३१२) जव जव निर्मित कर्म निवाण ॥ सुख ॥ १५॥ नवियण अंग ग्यार आराधवा तप विधिए कही, जेहथी पामे अनुपम महिमा अतुल अपार वरसग्यारने मास एकादश तप करो संपूरण तप हुवा होवे मंगलकार ॥ सु० ॥ १६॥ ज० ॥ अंग अग्यारे लिखावे सुवरण अकरे पुस्तक पूग उवणी नवकरवाली सार, कवली किलमिल पाटीने वलि पाटली वाटणामखमलरेसम वरतणा मनुहार ॥ सु ॥ १७ ॥ ज० ॥ मोरालेखण जावी वासकूपा वति कोथली, बटवा मिजासाणने चंदरवा अधिकार पूतीया चोपम रुमाल नाना नातिना पाटा पाटलाने निगमो रचै सुखकार ॥ सु ॥ १७ ॥ ज०॥ केसर सूखम खसकूचीने वाटकी, प्यालाने कलसा अंगलूहणा दिलधार चामर पत्र त्रयने आजूषण रत्ने जड्या, रचियै वास खेपादि पूजा विविधि प्रकार ॥ सु ॥ १५ ॥ ॥ देवपूजा तिम गुरुपूजा विधि आदरो, करियै साहमी वरल धरिय नावविसाल रात्रिजागो करिजिन गुण गावै प्रीतसुं अधिको धनखरचीने लहिये रंगरसाल ॥ सु० ॥२०॥ ॥ इग्यारसनो तपसेवो नविनावसुं, सुव्रत से पौषधथी चितलाय चौर अग्नीना उपायथी ते उगर्यो, ए तिथी सेव्यां शिवमारगमां जवाय ॥ सु० ॥१॥ कलश ॥ श्म नेमिजिनवर स्यामसुखकर सिवा दिवी नंदनो। एकादशी तप फल प्रकास्यो नविकजन श्रानंदनो सर, नय, निधि, नूविक्रमवरसैपोषवदि एकादशी जिन कृपाचंजसूरि पत्नणे सुगुरु सेवो नबसी ॥ सु० ॥२॥ इति ग्यारसवृष्ठ स्तवनम् ॥
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