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( २३६ )
॥ अथ कलश ॥ राग धन्याश्री ॥ तेतरिया रे जाइते तरिया जे जिन शासन अनुसरिया जी ॥ जेह कहे सुविहित मुनि किरिया । ज्ञानामृत रस दरिया जी ॥ ० ॥ एकही ॥ १ ॥ विषय कषाय सहू पर हरिया | उत्तम समता वरिया जी ॥ शील सन्नाहथकी पाखरिया | जव समुद्र जल तरिया जी ॥ ते० ॥ २ ॥ समिति गुप्ति शुं जे परवरिया | आत्मानंदे तरिया जी ॥ श्रवधार सकल वरिया || वर संवर संवरिया जी ॥ ते० ॥ ३ ॥ खरतर मुनि आचरणा चरिया । राजसार गुण गरिया जी ॥ ज्ञान धर्म तप ध्याने वसिया । श्रुत रहस्यना रसीया जी ॥ ते० ॥ ४ ॥ दीपचंदपाठक पद धरिया । विनय रयण सागरिया जी ॥ देवचंद्र मुनि गुण उच्चवरिया । कर्म अरि निर्जरिया जी ॥ ते ॥ ९ ॥ सुरगिरि सुंदर जिनवर मंदिर | शोजित नगर सवाई जी ॥ नवानगर चोमासुं करीने । मुनिवर गुण श्रुति गाई जी ॥ ते ॥ ६ ॥ अरिहंतनो यश जगमें विचस्यो । विस्तरी जस संपदा जी ॥ निग्रंथ वंदन स्तवन करतां । परम मंगल सुख सदा जी ॥ ७ ॥ इत्यष्ट प्रवचन माता सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पंडित श्रीदेवचंद्रजी कृत पंच भावना लिख्यते ॥
|| स्वस्ति श्रीमंदिर परम | धर्म धाम सुखाम | स्यादवाद परिणामधरी । प्रणमुं चेतन राम ॥ १ ॥ महावीर जिनवर नमुं । जज्बाहु सूरीश | बंदी श्रीजिनन गणी । श्रीदेमेंद्र मुनीश ॥ २ ॥ सदगुरु शासन देव नमी । बृहत्करूप अनुसार । शुद्ध जावना साधुनी । जाविस पंच प्रकार ॥ ३ ॥ इंद्रिय
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