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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११ ) तेह करी काउसम्म मत गमो । त्रिए दोष ए माहिला दले । सोल दोष साधवीनें मिले ॥ ११ ॥ संबुत्तर यानें संयती । दोष एह बोया जगपती । बहू दोष चौथो जब मिले । च्यार दोष भाविकानें टले ॥ १२ ॥ काऊसग्गथी समता सुख थाय । कठिन कर्मनी कोकि पुजाय । काज सग्ग करतां सवि सुख होई । कासग सम तप न कह्यो कोय ॥ १३ ॥ दोष रहित काटसग्ग कीजीये। जिम सहिजे शिवफल लीजीये | पंकित धीर विमलनो सीस । कवि नय विमल कहै निशिदीश ॥ १४ ॥ इति का सरगना १९ दोषनी सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ क्रोधादि चतुष्क सझाय ॥ ॥ तत्र प्रथम क्रोधनी सझाय ॥ ककुवारे फल ने क्रोधना । ग्यानी एम बोले । रीसतणो रस जाणिये । दलाल तोले ॥ क० ॥ १ ॥ क्रोधें कोकि पूरब तप । संजम फल जाय । क्रोध सहित तप जे करे। ते तो लेखे न थाय ॥ २ ॥ क० ॥ साधु घणो तपियो तो । धरतो मन वैराग | शिष्यना क्रोध थकी थयो । चंक को सियो नाग ॥ क० ॥ ३ ॥ श्रगि कठे जे घर थकी । ते पहलुं घरवालें । जलनो जोग जो नवि मिले। तो पासे नो पर जालें ॥ क० ॥ ४ ॥ क्रोध तणी गति एहवी | कहे केवल नांणी । हांणि करे जे हितनी । जालव जो इम जाली ॥ क० ॥ ए ॥ उदय रतन कहै क्रोधनें काढजो गलें साही । काया करजो निरमली । उपशम रस नाही ॥ क० ॥ ६ ॥ इति क्रोधनी सजाय संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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