SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६५) मुनिवर ॥ समजावे गुरु शीख । जयणायें चाले बोल जेरे ॥४॥ए जिनसास न सार प्रथम ज्ञान पनी दया पाल जोरे । जीहो मुनिवर ॥ एजिन । जीवा जीव विचार । जाणे अनुक्रम ज्ञानथी । जीहो मुनिवर ॥ ५ ॥ जाणे ॥ केवल दंसण झान । पामे कर्म खपायने । जीहो मुनिवर ॥ केवलम् ॥ हमें लहे सिद्ध थान । अजर अमर सुख सासता । जीहो मुनिवर ॥६॥ हमे ॥ अजयण उजीवणिया नाम । सुणतां तनमन ऊबसें । जोहो मुनिवर । सरदहे सुछ परिणाम । पुण्य कलश शिष्य जैतसी जीहो मुनिवर ॥ ७ ॥ महावीर लाख्यो एम । इति चतुर्थाध्ययन सकाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पंचमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ तुंगीयागिरि शिखर सोहेर ॥ ए देशी ॥ ॥ पंचम पिमेषण अफयणे। उद्देशा बेसार रे। विधिसुं आणी जात पाणी । करो तरो संसार रे॥१॥दीख पालो दोप टालो। धरो ध्यान समाधि रे । सूत्र साचो अरथ आगे। नणो वाचो साधरे॥॥ संचरे मुनि गोचरीने । नगर गाम मकार रे । जीव निहाले दया पाले। बोले हसे न लिगार रे॥३॥दी॥श्रशन पाणी खादिम स्वादिम । सूझता ट्ये जेह रे। असूझते मुनि दोष जाणी। कहे न कलपे तेह रे ॥४॥दी०॥ काय मरदी साधु अरथे। कीया नोजन जेह रे । तेह नगर जे जती वरजे । सूआवम आदि देरे ॥५॥ दी० ॥ पिकनिषेध्या कुल निषेध्या। तजे नजे निरदोष रे । मुधा दाई मुधा जीवी बेऊ जावे मोखरे ॥६॥ दी॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy