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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६०) धूप न वी ए ॥ १० ॥ वमन विरेचन कर्म । करी न गमावे धर्म । दांते दांतण न घस ए। न लगामे मिसि ए ॥११॥ पहिरे नहीं हीर चीर । सोना न करे शरीर । पीठी न मंजणि ए । आखिन आंजणि ए ॥ १२ ॥ सूत्र में बावन बोल । वरजे साधु अमोल । तप किरिया करी ए।पुहचे शिवपुरी ए॥१३॥ नामे ए खुड्डीयार । अजयण तीजो सार । अरथ अनेक ने ए । जैतसी मन रूचे ए ॥१४॥ इति तृतीयाध्ययन सकाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ चतुर्थाध्ययन सझाय लिख्यते ।। ॥ महावीर लाख्यो एम । सामि सुधरमा उपदिसे । जीहो मुनिवर महावीर जाख्यो एम । सुण सुण जंबु तेम । चोथो अजयण जीवनो जीहो मुनिवर महावीर नाख्यो एम ॥१॥ सुण सुण जंबू तेम । पृथवी अप तेऊ वाऊ वनस्पति त्रस जांगिये । जीहो मुनिवर । पृथवी अप तेऊ वाऊ वनस्पति बस जांणियें । एह गए जीव निकाय । हिंसा टाली दया पाली ये । जीहो मुनिवर ॥२॥ महाव्रत पांच सदैव । वली गे व्रत पाली ये । जीहो मुनिवर । महाव्रत पांच सदैव । वली बगे व्रत पाली ये । त्रिबिधे त्रिविधे जाव जीव । गरही निंदी पमिक्कमि । जीहो मुनिवर ॥ त्रिविधे त्रिविधे जाव जीव गरही निंदी पमिकमि ॥३॥ शिष्य पूरे लेई दीख । किम चालुं बोलुं किम रहूं। जीहो मुनिवर । शिष्य पूरे लेई दीख । किम चालु बोलुं किम रहुँ । समजावे गुरु शीख । जयणायें चालो बोल जेरे । जीहो For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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