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( १६७ )
न लाजे लिगार ॥ ६ ॥ मुनी० ॥ नारि सारि पारकी जी । देखी देखी मत जूल | वाक ऊकोट्या तरूपरे जी । श्रथिर हु इस मुखीर ॥ ७ ॥ मुनी० ॥ जिमहाथी अंकुश वशे जी । थिर वाम आवे तेम राजी मती सती बुकव्यो जी । स्थिराम श्रव्यो रहनेम ॥ ८ ॥ मुनी० ॥ अध्ययन सामण पुधिया जी । सखरा
विचार | पुन्यकलश शिष्य जैतसी जी । प्रणमे सूत्र सुखकार || || मुनी० ॥ इति श्री द्वितीयाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ तृतीयाध्ययन सझाय लिख्यते ॥
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॥ सुधा साधु निग्रंथ | साधे मुक्तिनो पंथ । यतम संबो ए । संबर दो ए ॥ १ ॥ दूषण टाले दीख तेहनें एहवी शीख | वीर जिनवर कहे ए । मुनिवर सरद हे ए ॥ २ ॥ उदेशक आदि देय | एहवा पिंक न लेय। कृतकम जालिये ए । साम्हो ये || ३ || लेवेन राईजत्त । न जीमें गृहिनें पत्त । राय पिंक न आदरे ए । सज्यातर परिहरे ए ॥ ४ ॥ राखे न संनिधि राय । दान शाला नवि जाय । वाय न वींजणों ए । राग न जणों ए ॥ ए ॥ चोवा चंदन चंपेल । तन न लगा तेल । जोवे नहिं आरशी ए । ते गुरु तारसी ए ॥ ६ ॥ खेले न पासा सार । ते किम बोले मार । छत्र नवि शिर धरे ए । गृही संगति परिहरे ए ॥ ७ ॥ मांचां खाट पलंग । तजे चिकित्सा अंग । जूती नवि पगतले ए । जीवदया पले ए ॥ ८ ॥ श्रदरे तीन रतन्न । बोने तीन जन्न | कोम कोम मोलना ए । गनि जल अंगना ए ॥ ए ॥ मूला आदि कंद मूल । सचित्त बीज फल फूल । तजे तिम सेलमी ए । लूंए
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