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( ३ )
बेसे पहू । सुरकृत चौमुख रूप देखे सह । दीपे शोक तरु बार गुण देदथी । देखि दरखे सहू मोर जिम मेथी ॥ १७ ॥ मोतियां जालि त्रिवत्र सुविसालए । रूप चिहुं चिहुं दिसें चामरढालए। योजन गामनीवाणी श्री जिनतणी । भगवंत उपदिशें बार परषद जी ॥ १८ ॥ प्रदक्षिणा रूपथी ऋगनिकूक। गणधर साधवी तिम वेमाणीय सुरी | ज्योतषी जुवानी विंतरी स्त्री पणें । नैशत कुंए जिनवाणि ऊनी सुखें । त्रिहु॑ता पति वाय कुंए में जाए। सुर वेमानीय नरनारी ईशाणए। वारद परपदा मद मार बोए । जूख त्रिष वीसरे सुर्णे कर जोकए ॥ १५ ॥ पूठ जामंगल तेज प्रकास ए । जोयण सहस धज ऊंच आकास ए । ऊलहले तेज धर्मचक्र गगनें सही । महक सह वारणें धूपणासही ॥ २० ॥ वाहण वहील सहुधरीय पहिले गर्दै । होइ पग चारि नर नारि ऊंचा चढे । जिनतली वाणी सुखी जीव तिरजंच ए । वैर तजि बीय गढ रहे सुख संचए ॥ २१ ॥ पुण्यवंत पुरष ते परषद बारमें। सुणें जिन वाणि धनगाय अवतार में। चौविह देव जिए देव सेवा रचै । मणिमयी मांहिली प्रोलमा वसे ॥ २२ ॥ चिहुं दिसि वाटली वावी चौ जायें । विदिसि चौकूण दोइ दोइ वखाणिये । श्राव जिहां वावी
लामृत जेम ए । स्नान पाने वपु निरमल हेमए ॥ २३ ॥ जय विजय जयंत अपराजिया । मध्य कंचण गर्दै प्रोल वसंतिया । बरु पुरुष खडंग र्चिमाल ए । रजत गढ प्रोलना एह रखा वाल || १४ || पहिल त्रिगको न दुवे जिए पुरग्राम ए । देव महदिकरचे तिगमए | करण वारवार नहीं कारण कोईए ।
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