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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (०६) अरिहंत चेई तप चोयो चोकम एह । उपवास अढाई वायण एक गुण गेह ॥ ए ॥ पांचमो लोगस्स तप असावीसम नाम । साढा पनरह उपवासे वायण त्रिणगम । पुरकरवरदी तप उको उक्कम सार । साढात्रण उपवासे वायण एक सुविचार ॥ २० ॥ सिझाएं बुखाणं सातमो उपधान माल । उपवास करे इक चौविहार तत काल । एक बायण करे बलि गुरु मुख सरस रसाल । गड नायक पाशे पहरे माल विशाल ॥ ११ ॥ माल पहरण अवशर आणी मन उरंग । घर सारू वारू खरचे धन बहु जंग । अति उन्लवकीजे राती जोगो दिल खोल । गीत गान गवावे पावे अति रंग रोल ॥ १२ ॥ ढाल३॥ ए साते उपधान । विधसों जे वहे । ते सूधी किरिया करेए। खिण नकरे परमाद । जीव जतन करे । पुंजि पुंजि पगला नरेए ॥ १३ ॥ नकरे क्रोध कषाय । हम हम हसे नहीं । मरम केहनो नवि कहे ए । नाणे घरनो मोह । उत्कृष्टी करणी करे । साधुतणी रहणी रहे ए ॥ १४ ॥ पहुरसीम सिकाय । करपोरसी नणी । उंचे स्वर बोले नहीं ए । मनमांहें नावे एम । धन धन ए दिन । नर नव मांहिं सफल सही ए ॥ १५ ॥ जे साते उपधान । विधसेती वहे । पहिरे माल सोहावणी ए। तेहनी किरिया शुध। बहु फल दायक । करम निरजरा अति घणी ए॥१६॥ परनव पामे रिख । देव तणा सुख । बत्रीस बद्ध नाटक पमे ए । लाने लील विलास । अनुक्रम शिव सुख । चढती पदवी जे चढे ए॥ १७ ॥(कलश) श्म वीर जिणवर जुवण दिणयर मात त्रिशला नंदणो । उपधान ना फल कहे उत्तम For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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