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(३३) प्रमुख चोथीय ॥ न ॥ १४ ॥ पंचमी नरके सीमा सापणी । बजी लगि स्त्री जाय । सातमीये माणस के मामलो। ऊपजे गरजज आय ॥ न० ॥ १५॥ नरक की आवे बिहुं दंझके । तिरयंच के नर थाय ॥ ते पिण गरजने परयापता। संख्याती जसु आय ॥ न० ॥ १६ ॥ नारकियांने नरक श्री नीसवां । जे फल प्राप्ति होय । उत्कृष्ट नांगे करि ते कहुँ । पिण निश्चे नहीं कोय ॥ न ॥ १७ ॥ प्रथम नरक श्री चवि चक्रवर्ति हुवे । बीजी हरि बलदेव । तीजी लगि तीर्थकर पद लहै । चोथी केवल हेव ॥ न० ॥ १०॥ पंचमी नरकनो सरब विरति लहै । उसी देस विरत्त । सातमी नरक नो समकितहीज लहै । न हुवे अधिक निमित्त । न० ॥ १५॥ ॥ * ॥ ढाल ३ करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥
मानव गति विण मुगति हुवे नहीं रे । एहनो इम अधिकार । आऊ संख्याते नर सहु दंगके रे । श्रावी लहै अव. तार । मानव ॥ २० ॥ तेऊ वाऊ दंमक बे तजी रे । बीजा जे बावीस । तिहांथी आया थाये मानवी रे । सुख-दुःख कर्म सरीस ॥ मा०॥२१॥ नर तिरयंच असंखी आऊखे रे । सातमी नरकना तेम । तिहांथी मरिने मनुष्य हुवे नहीं रे । अरिहंत नाख्यो एम ॥ मा० ॥ २२ ॥ वासुदेव बलदेव तथा वली रे । चक्रवर्तिने अरिहंत। सरग नरगना आया ए हुवे रे। नर तिरिथी न हुवंत ॥ मा० ॥ २३ ॥ चौविह देव थकी चवि ऊपजे रे । चक्रवर्ति बलदेव । वासुदेव तीर्थकर ए बे हुवे रे । वैमानिक थकी बेव ॥ मा० ॥२४॥
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