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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३६) हरो एक आधार । तारण तरण में त्रिकरण सुझे अरिहंत लाधो । हिव संसार घणो नमिवो तो पुद्गल आधो ॥ ३२ ॥ तूं मन वंबित पूरण आपद चूरण सामी । ताहरी सेवलहीतो में नव निध सिध पामी । अवरन कांई श्वं इण लव तुहीज देव । सूधे मन एक होयजो लव लव ताहरी सेव ॥ ३३ ॥ कलश । इम सकल सुखकर नगर जेशल मेर महिमा दिन दिने । संवत्तसतरे जगणतीसे दिवस दीवाली तणें । गुण विमलचं समान वाचक विजयहरष सुसीस ए । श्रीपासना गुण एम गावे धरमसी सुजगीस ए ॥ ३४ ॥ इति श्री चौवीस दंझक स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री इरियावही मिच्छामि दुक्कड संख्या स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ * प्रभु प्रणमुरे पास जिणेसर थंभणो ए हनी ॥ ॥ पद पंकजरे प्रणमी वीरजिनंदना। त्रिकरण सुधरे करि मुनिवर पयवंदना । जैमतेरे पमिकमी जिम इरियावही । श्रीवीरनी रे वाणी तहत करि सरदही । उहालो । सरदही वाणी मन सुहाणी चित्त आणी तेवली । मिठामि छक्कम तणी संख्या कहि सुं जिम कही केवल । नूदग जलण तिम वाज वसई विगल पण इंडी तणी। करतां विराहण करम बंध्या दूर ते करिवा लणी ॥ १॥ ढाल ॥ पुढवी दगरे तेऊ वाऊ वणस्सई । पण थावर रे बादर सुहम दसें थई । प्रत्येक जरे वणस्सई ग्यारें अया। बावीसरे पजत्तग अपजत्तया ॥ जयालो ।। पऊत्त अपऊत्तग वखाएया विगल तिय बह जाल ए । जस For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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