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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) सहू, हीर नीर धनु तीर ॥ मो० मी० ॥३॥ एहना रे सुयखंध दोय बै, वलि अध्ययन तेवीस ॥ मो० ॥ उद्देसा समुद्देस जिहां जला, संख्याये रे तेत्रीस ॥ मो० मीठी ॥ ४ ॥ नय निदेप प्रमाण नया, पद उत्तीस हजार ॥ मो० ॥ संख्याता अदर पदमाहे, कुण लहे तेहनो रे पार ॥ मो० मी० ॥ ५॥ गमा अनंता पर्याय वली, जेद अनंत जिण मांहि ॥ मो० ॥ गुण अनंत त्रस परित्त कह्या, थावर अनंत जे मांहि ॥ मोग मी ॥६॥ निवड निकाचित्त जे सासय कमा, जिन पणत्तारे नाव ॥ मो० ॥ नाषी रे सुंदर एह प्ररूपणा, चरण करणनो रे जाव ॥ मो० मी० ॥ ७॥ करिये जगत जुगत ए सूत्रनी, निश्चै लहिये रे मुक्ति ॥ मो० ॥ विनयचं कहे प्रगटे एहथी, आतमगुणनी रे शक्ति ॥ मो० मी० ॥ ॥ इति सूयगमांग सज्जाय ॥ २ ॥ ॥ अथ ३ ठाणांगसूत्रसज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल | आठ टके कंकण लियोरी ॥ ए चाल ॥ त्रीजो अंग ललो कह्यो रे जिनजी, नामे श्रीगणांग॥ मोरो मन मगन थयो ॥ हारे देखी २ नाव, हारे जीवाजीव स्वजाव । मो० ॥ सबल जुगत करी गजतो रे जि०, जीवानिगम नपांग ॥ मो० ॥१॥ एह अंग मुझ मन वस्यो रे जिनजी, जिम कोकिल दल अंब ॥ मो० ॥ गुहिर नाव करि जागतो रे जि०, आज तो एह आलंव ॥ मो॥२॥ कूट शैल सिखरी शिला रे जि०, काननमें बलि कुंम ॥ मो० ॥ गह्वर आगर यह नदी रे जि०, जेहमें अने रे उदंग ॥ मो० ॥३॥ दस गणा अति For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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