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(३०५) कोट मरोट वसंदाहे, नरनारी गावे वंचित पावे शदि सिधि नित वाधंदाहे, १० इति दादाजी गगर निसानी संपूर्णम् ॥
॥ अथ दान शील तप भाव चोढालियो लिख्यते ॥
॥हा ॥ प्रथम जिनेसर पाय नमी, पामी सुगुरु प्रशाद ॥ दान शील तप नावना, बोलिस बहु संवाद ॥ १॥ वीरजिनंद समोसस्या राजगृही उद्यान ॥ समवसरण देवें रच्यों, बैग श्रीवर्तमान ॥२॥ वैठी बारै परखदा, सुणवा जिपवर वाण, दान कहे प्रनु हुं वमो, मुझने प्रथम वखाण ॥ ३ ॥ सांजलजो. सहुको तुमें, कुण , मुफ समान ॥ अरिहंत दीक्षा अवसरे,
आपे पहिलं दान ॥४॥प्रथम पहुर दातारनो, खेडु कोई नाम ॥ दीधारा देवल चढे, सी वंगित काम ॥ ५॥ तीर्थकरने पारणे, कुण करस्यै मुक होम ॥ वृष्टि करुं सोनातणी, साढीबारै कोमि ॥६॥ हुँ जग सगलो वस करूं, मुफ मोटी चै वात ॥ कुण २ दानथकी तिया, ते सुणज्यो अवदात ॥७॥
॥ ढाल १॥ ललनाकी एदेशी ॥ धनसारथवाह साधुनें, दीधुं घृतनो दान ललना ॥ तीर्थकर पद में दियो, तिणें मुख्ने अनिमान ललना ॥१॥ दान कहै जग हूं वमो, मुझ सरिखं नहि कोय ललना ॥झधि समृद्धि सुख संपदा, दाने दोलत होय ललना ॥ दा० ॥ ॥ सुमुख नाम गाथापती, पमिलान्यो अणगार ललना ॥ कुमर सुबाहु सुख लहै, ते तो मुऊ उपगार ललना ॥ दा० ॥३॥ मासखमणनें पारणे, पमिलान्यो शपिराय ललना ॥ शालिजा सुख जोगवै, दानतणे सुपसाय ललना ॥ दा॥५॥ पांचसें मुनिने
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