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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (शए।) एक प्रासाद कराव्यौ थाप्या एह जिनाले ॥६॥ सहुवात कहीनें वासग गयो पायाले । श्रीकृष्ण नरेसर मनचिंते तत. कालै ॥ जो एहवो तीरथ दुवे दारिकामकार । तो जाणुं नर लव सफल श्रयो अवतार । सफल जनम करिवाने काजे तेह बिंब तिहां थाणे । श्री कारिका हेममें जिणवर थाप्या प्रगट प्रमाणे । घणे काल पूजा तिहां पामी करम निकाचित जाण। श्रावकनें सुपनांतर आवी देववदे इम वाणी ॥ ७ ॥ प्रनु प्रतिमा वाहण लेई समुज मजारि । मुंके ज्यो नगरी थास्ये अवरप्रकार । तिण सागर अंतर कालगयो बहु जाम । दक्षिण दिसि उत्तम कुंती नगरी गम । कुंती नगरी जैनवसै जिहां श्रावक सागरदत्त । वाहण सातवटै व्यापारे पोते परघल वित्त । अन्य दिवस सायर विच वहतां जिहां ने थंजणपाश । परि आव्या अंच्या वाहण ते सवि श्रया उदास ॥७॥ ढाल ३ जी॥ मास दिवस वाणी थई अंबर सुर राय । प्रतिमा अंगण पासनी सायर जलमांय । सुर प्रगट्यो जिण सासणे ॥ सुर कहे वाणी एह प्रतिमा नावसुं प्रगट करो । जश् जैन कुंतीनगरी जिणहर मूलनायक एह धरो । ते बिंबकुंती मांहिं थाप्यो कहै बहु श्रावक तिहां । ए सकल तीरथनाथ समरथ पुन्य जोग मिल्यो इहां ॥ ए॥ इणि अवसर दसलर पुरे पालत्त सूर । विद्याबल अंबर में अतिसय जरपूर । तीरथ जाय जिणहरनमें । ते नमें सेनुंज प्रमुख गिरिवर सदा पाखी पारणे पालीयतांणे रह्यां थाणे नागारजुन जोगी पणें । ते धातु सोवन काज धमतां मास के रस करे । करि कोप जैरववीर नाखे रूप पंखीनो For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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