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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७३ ) वंचित सी ॥ ज० ॥ ५ ॥ 5विध धर्म जिनवर कह्यो जी | देशने सर्व विरत । धर्म शुक्ल दोय ध्यानमां जी । होवे सदा निरत्त ॥ ज० ॥ ६ ॥ अर्थ प्रकाशे जिनवरू जी । सूत्र रचे धार । बिहू सेवे वाचंयमी जी । द्वादस अंग विचार ॥ ज० ॥ ७ ॥ ॥ ढाल २ जी ॥ नमोरे नमो सेडुंज गिरिरे ॥ एदेशी ॥ बीज दिवसमा जालीये रे । कल्याणक सुविशाल रे | श्रावण सुदि बीजे चव्या रे । सुमतिनाथ दयाल रे । नमोरे नमो जिनचंद्र रे ॥ १ ॥ माघमासनी उजली रे | बीज दिवसमां जा रे | जिनंदन जनम्या प्रजू रे । त्रिहूं जगना महिराण रे ॥ नमो० ॥ २ ॥ एहिज तिथी वासपूज्यजी रे । पाम्यो केवल ज्ञान रे । फागुण सुदि बीज जालीये जी । अरनाथ चव सुजा रे ॥ नमो० ॥ ३ ॥ समेतशिखर पर सिaatar रे । शीतल जिनवर नाए रे । चेतवदि बीज सुंदरु रे । विचल सुख मन प्राण रे || नमो० ॥ ४ ॥ इम कल्याणक इ तिथी रे । कालानंते होय रे । अनंत कहयाएक जाणजो रे । हम विधि जोय रे || नमो० ॥ ५ ॥ तप पूरण हूं कां रे । कमणो सुविवेक रे । रत्नत्रयी आराधना रे । धन खरचो बहु बेक रे ॥ नमो० ॥ ६ ॥ सीमंधरादि जिनवरारे विहरमाए जिन वीसरे । मनमंदिरमां आवजोरे । कृपाचंद्र सूरीशरे || नमो० ॥ 9 ॥ इति बीजनो बृद्धस्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ आठमनो वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ इहा ॥ वर्धमान जिनवरनमुं । समरि सारदमाय । अष्टमी तप विधिवरण | आगम युत संप्रदाय ॥ १ ॥ म्म तिथी बृ० १८ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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