________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१४) ॥ २५॥ सग सग सग सग दश चवदे दो दो दो लाख । च्यार च्यार तिम च्यार चवद लख सूत्रे साख । नू थप तेऊ वाऊ वणपत्तेय साधार । बि ति चौपण तिर नारग सुरनर अनुक्रम धार॥२६॥ काय न आय न पाण न जोणी कुल नहीं जात । सादि अनंत नंग जिन श्रागम थिति विक्षात । रोग न सोग न जोग जोग नहीं नारि लिंग । नहीं य नपुंसक पुरष तणा नहीं अंग उपांग ॥ २७ ॥ नाण दंशण चारित वीरज ए च्यार अनंत । सिद्ध श्रया तेहथी सिद्धांते सिद्ध कहत । इमए जीव विचार गाथाथी लाषा रूप । श्रावक आग्रहथी में कीनो सुगम सरूप ॥ ॥ खरतर गळ नट्टारक श्रीजिनसान सूरीस । रत्नराज गणिग्यान सार मुनिसीस जगीस। संवत शशि रस वारण ससिहर धर निरधार ।माघ चौथ दिनकी नो जैपुर नगर मकार ॥२॥ इति श्रीजीवविचार प्रकरण नाषा गजित स्तवनं संपूर्णम् ॥
॥ अथ नवतत्व भाषा गर्षित स्तवनं लि०॥
॥ * ॥ उहा ॥ नमस्कार अरिहंतनें । सिघसूरि उवकाय । साधु सकल प्रणमीकरी प्रणमी श्रीगुरु पाय ॥ १ ॥ करस्युं हूं नवतत्वनी । गाथा नाषा रूप । मंदबुधि गुरु सानिधे । कहिस्यु सुगम सरूप ॥२॥ (सुरती महीनानी देशी) जीव अजीवें पुण्य पाप तिम आसव सोय । संबर निकर बंध मोद ए नव तत्व होय । चवद चवद बायाल वयासी वलि बायाल । ससावन बारे चौ नव क्रम जेद निहाख ॥१॥ग उति चौविद पणविह बिह
For Private And Personal Use Only