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(५५) चित्रसेन ने रोहिणी । वासुपूज्य तीर्थकर पासे रे ॥श्म ॥२१॥ इण परि रोहिणी आदरी । ऊपर ऊजमणो कीधो रे । चित्रसेनने रोहणी । मन सूधे संजम लीधो रे ॥इम ॥२५॥ श्राउ पूत्रे आदरी । दीक्षा बारम जिन आगेरे । वलि नाना विध तप तपे । धरम तणी मति जागेरे ॥ इम० ॥ २३ ॥ करि श्रणसण आराधना । सहि केवल शिवपद पायारे । जिन वाणी आणी हिये । प्रनु चरणां चित लायारे ॥ श्म ॥॥ मनमोहन महिमा नीलो । में स्तव्यो शिवपुर गामी रे । मन मान्या साहिब तण।। हिव पुन्ये सेवा पामो रे ॥श्म० ॥२५॥ कलश ॥ श्म गगन उगमुनि चं वरसे (१७२०) चोथ श्रावण सुदि नली ॥ में कही रोहिणी तणी महिमा सुगुरु मुख जिम सांजली । वासुपूज्य अमने श्रया सुप्रशन चितनी चिंता टली। श्रीसार जिन गुण गावतां हिव सकल मन आस्या फली ॥२६॥ इति श्री रोहिणी तप वृद्ध स्तवनं संपूर्णम् ॥
॥अथ पंतालीस आगम वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ चोवीसे श्री तीर्थपति । नमूं देव अरिहंत ॥ अर्थ प्रकाशे गणपपुर । घादश अंग महंत ॥ १ ॥ त्रिपदी सहि गणपतिरचे । सूत्र अर्थ संजोग ॥ अक्षर रूपे सारदा । प्रण त्रिकरण योग ॥२॥ टीका कर्ता जगत गुरु । सूत्रकरे गणधार ॥ पंचांगी युत विस्तरे । नय निक्षेप विचार ॥ ३ ॥ दुषम काल मुनिसें। जूले बारम अंग ॥ कंठ पावसे लिखतकर। रचना रची अनंग ॥ ४ ॥ खंदिल अरु देवर्षि गणि । आचारज सयपंच ॥ चौरासी आगम लिखे । कोटि ग्रंथ तज खंच
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