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( १५४ )
aपन्न को जादवरो साहिब, कृष्ण महावल जांणी ॥ अटवी महि मूं एकलको, विल २ करतो पाणी रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥ ए ॥ पांव पांच महा ऊकारा, हारी प्रोपदा नारी ॥ वारे बरस लग बन रna किया, नमिया जैम निख्यारी रे || प्रा० ॥ क० ॥ १० ॥ बीस जुजा दस मस्तक हूंता, लखमण रावण मारयो || एकलकै जग सहु नर जीत्या, ते पिए कर्म्मसुं हायो रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥ ११ ॥ लखमण राम महा बलवंता, अरू सतवंती सीता ॥ कर्म्म प्रमाणे सुख दुख पांम्या, वीतक बहु तस वीता रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १२ ॥ समकितधारी श्रेणिक राजा, बेटे बांध्यो मुसकै ॥ धरमी नरने कर्म धकाया ॥ करमसुं जोर न किसका रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥ १३ ॥ सतियसिरोमणी प्रौपदि कहिये, जिन सम वर न कोई || पांच पुरुषनी हुइ ते नारी, पूरब कर्म्म कमाई रे || प्रा० ॥ क० ॥ १४ ॥ श्रजानगरी नो जे स्वामी, साचो राजाचंद || मां कीधो पंखी कूकको, कम् नाख्यो ते फंद रे || प्रा० ॥ क० ॥ १५ ॥ ईस्वर देव ने पार वती नारी, करता पुरुष कहावै ॥ अहनिस महिल मसां मे वासो, जिदा जोजन खावे रे || प्रा० ॥ क० ॥ १६ ॥ सहस किरण सूरज परतापी, रात दिवस रहे तो, सोल कला ससीधर जग चावो, दिन २ जाये घटतो रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥ १७ ॥ इम अनेक खंड्या नर करमें, जांज्या ते पिए साजा ॥ कविहरष कर जोमीने विनवै, नमो २ कर्म्म महाराजा रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १८ ॥ इति कर्म्म सजाय सं० ॥
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