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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५३) पारणे हे अम्मा, विगय निवारण मोरी अम्मा, वीर वखाण्यो सुरनर बागलै ॥ १७ ॥ सुख संजम पाले हे अम्मा, दूषण टाले मोरी अम्मा, अंग श्यारे अरथ रूमा लणे ॥१९॥ संजम पाट्यो हे अम्मा, नव पखवामे मोरी अम्मा, मास संथारे सरबारथसिद्ध बह्यो ॥२०॥ इति धन्ना शषि सज्काय संपूर्ण ॥ ॥ अथ कर्मसज्झाय लिख्यते ॥ देव दाणव तीर्थंकर गणधर, हरि हर नरवर सबला॥ करम प्रमाने सुख सुख पाया, सबल हुआ महा निबलारे प्राणी, कर्म समो नहि कोई ॥१॥ आदीसरजीने करम अटास्या, वरस दिवस रह्या जूखा ॥ वीरने बारे वरस मुख दीग, ऊपना ब्राह्मणी कूखै रे प्राणी ॥ का ॥२॥ साठ सहस सुत माया एकण दिन, जोध जुवान नर जैसा ॥ सगर दुई महा पूत्रनो मुखियो, कम्मतणा फल एसा रे ॥ प्रा॥ क ॥३॥ बत्रीस सहस देसांरो साहिब, चक्री सनतकुमार ॥ सात रोग सरीरमे ऊपना, कम्र्मे कीयो तनु गर रे ॥ प्रा० ॥४॥ कर्म हवाल किया हरीचंदने, वेची सुतारा रांणी ॥ बारे वरस लग माथे आयो, नीचतणे घर पाणी रे ॥ प्रा० ॥ का ॥५॥ दधिवाहन राजारी बेटी, चावी चंदनवाला ॥ चौपद ज्यूं चहुटामें वेची, करमतणा ए चाला रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥६॥ संजूम नांमे श्राठमो चक्री, कम्र्मे सायर नाख्यो । सोले सहस जद उन्ना देखे, पिण किणही नहि राख्यो रे ॥ प्रा० ॥क०॥७॥ ब्रह्मदत्त नामे बारमो चक्री, कर्मे कीधो आंधो ॥ श्म जाणीने अहो नविप्राणी, कर्म को मत बांधो रे॥ प्रा० ॥ क०॥७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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