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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१३ ) या सोर । ऊरु लग्यो बूंदऊम ऊोर । बिच चमके दामनी कोर ॥ उरुावनी ॥ खरुरुरुरुरु खघनमाला । तरुरुरुरुरु जल परनाला । रुरुरुरुरु नाला खाखा । में दुखी हुइ बेहाल ही में साल हुइ जलधारी ॥ राजु० ॥ २ ॥ नावमें पवन प्राचीना । बादलमें धनुष रंगीना । जंगलमें नदीस्वर जीणा । ज्यं बाजे मनोहरबीणा । अब एसें कहो क्या जीना । प्रीतमनें मुक्के दुख दीना || उरुावनी ॥ युं विलपत मुख मुरजाई । सखियन मिल दौन जगाई । यूं विलखत वचन सुनाई । सखि देखो पीयाकी रीत । तोरुके प्रीत | गये गिरनारी ॥ राजु० ॥ ॥ ३ ॥ आश्विनमें जरा नहिं धीर । यडुचंद जये वे पीर | ऊ चली नेमके तीर । काटनकूं कर्म जंजीर । प्रीतमसें लियो कसर व्रत संजम समकित हीर | उमावनी || शिवराजुल नेम सिधाए | इंद्रादिक जसु गुण गाये । जविजन मिल शीश माए । मुनि कहे कपूराचंद । प्रेमसें बंद । जाउं बलिहारि ॥ राजुल० ॥ ४ ॥ इति श्रीमनाथजी की लांवणी संपूर्णा ॥ ॥ अथ श्रीकेसरियानाथजी की महातम लांवणी लिख्यते ॥ ॥ दोहा ॥ आदि करण आदिम जगत | आदि जिनंद जिनराज | धूलेवानाथ जाचो धणी । वरणुं श्रीमहाराज ॥ १ ॥ चाल लावणी ॥ कास्यपगोत इक्ष्वाकुवंशमें मरुदेवा जननी जायो || नानि नरेसर वंश उजालन । यदि धर्म जस प्रगटायो ॥ २ ॥ चौसट सुरपति देव देवी मिल । मंदिर गिरपे न्हवरायो । इस रूप निधि प्रगट कल्पतरु । सुरनर मुनि जननितध्यायो || ३ || मेवाम देशमें नगर धुलेवे । जास For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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