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(२७५)
कट्याणक तिथी जाणो । पजुषण मनमा आयो । इत्यादिक पर्व पिगणो ॥ स० ॥ ना० ॥ ३ ॥ बीजे अंगे पांचमे अंगे। उपाशकदशा सुखसंगे । आवश्यकटीका उमंगे ॥ स० ॥ ना० ॥ ४ ॥ इत्यादिक आगम साखे । परव तिथी ये पोषध लाखे । विधियुत करतां फल चाखे ॥ स० ॥ ना ॥ ५॥ जे नित्य पोषधने ताणे । आगम विधि ते नबि जाणे । हरिजन वचन परमाणे ॥ स० ॥ ना० ॥६॥ ॥ढाल ३ जी॥जइने कहेजो मारा बालाजी रे॥एदेशी ॥
श्रापम परव तिथी कही । मारा बालाजी रे । आराधो गुण गेह । जगगुरु वंदिये । मारा बालाजी रे । एह तिथी कट्याणक घणा । मारा वाला जीरे त्रिदुं कालना गिणो तेह । जगगुरु वं० । मारा वालाजी रे ॥१॥ आचारंगमां नाखिया ॥ मा० ॥ वा० ॥ नावना अध्ययनसार ॥ ज० ॥ मा० ॥ गणांग गणे पांचमे ॥ मा० ॥ वा० ॥ कट्पसूत्र मनुहार ॥ ज०॥०॥२॥ आगम प्रकरण चरित्रघणा ॥ मा० ॥वा ॥ एमां प्रगटपणे तूं जोय ॥ ज० ॥ वं० ॥ बकल्याणक वीरना ॥ मा० ॥ वा० ॥ आगम माहे होय ॥ ज०॥०॥३॥ पजूसण कटपे कह्यो ॥ मा० ॥ वा० ॥ पचास दिवस प्रमाण । तेह नवि माने मानश्री ॥ मा० ॥ वा० ॥ जिन आशा सुखखाण ॥ ज० ॥ वं०॥।॥ इम अनेक कल्पना करि॥ मा०॥वा॥ मनमान्यो माने तेह ॥ ज० ॥ वं० ॥ तुज आगम मुज मन वस्यो । मा० ॥ वा ॥ एहज लव लव होय ॥ ज० ॥ वं० ॥ ५॥ विसंवाद घणो पड्यो ।। मा० ॥ वा० ॥ केहने कहिये
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