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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७६) जाय ॥ ज ॥ 4 ॥ अतिशय ज्ञानी तणो पड्यो ॥ मा० ॥ वा० ॥ विरह ते केम खमाय ॥ ज०॥ ॥६॥मुःखम कालमां ऊपनो ॥ मा० ॥ वा० ॥ दक्षिण जरत मकार ॥ जप ॥वं० ॥ प्रजूनो सरणो मे ग्रह्यो ॥ मा० ॥वा० ॥ प्रनु गे प्राण आधार ।। ज ॥ वं० ॥ ७ ॥ तारक तारो तातजी ॥ मा० ॥ वा० ॥ हुंचं सेवक तुज्ज ॥ ज० ॥ ५० ॥ अपराधि घणा तारिया ॥ मा० ॥ वा० ॥ केम विसारसो मुज ॥ ज ॥ वं० ॥ ॥ कलस श्रीवीर जिनवर नविक सुखकर मात त्रिशला नंदनो । में शुण्यो आगम नक्ति संयुत उरित कर्म निकंदनो । शुन वरस जगणीसे चमोत्तर नावसुदि आपम समें कृपाचंधसूरि स्तवन कीधो अनुजव ज्ञानप्रकाशमें ॥ १० ॥ इति अष्टमी वृक्षस्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ इग्यारसनो बृद्धस्तवनं लिख्यते ॥ समवसरण बेठा लगवंत । धरम प्रकाशे श्रीअरिहंत ॥ बारे परषदा वेठी जुमी । मिगशिर शुदि ग्यार सवमी ॥१॥ मशिनाथना तीन कट्याण । जनम दीदाने केवल ज्ञान ॥ अर दीक्षा लीधी रूवमी ॥ मि०॥२॥ नमिने उपर्नु केवल ज्ञान । पांच कल्याणक अतिपरधान ॥ ए तिथीनी महिमा एवमी ।। मि ॥३॥ पांच जरत ऐरवत इमहीज । पांच कट्याणिक दुवे तिमहीज ॥ पचासनी संख्या परगमी ॥ मि० ॥४॥ अतीत अनागत गिणतां एम । दोढसे कट्याणक थाये तेम ।। कुण तिथी जे ए तिथी जेवमी ॥मि०॥५॥ अनंत चोवीशी इण पर गियो । लान अनंत उपवासां तो ॥ ए तिथी सहु तिथी For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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