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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१५) जलवट थलवट वाट घाटमें। रण रावल दुख दूर हरे । इक चित ध्याने जे नित समरे । खय खजाना जर जरे ॥ ९८ ॥ aaa aaa धप मप धप मप । ताल पखावत राजत हे । गरु गरु गरु दौगम गम दौगम गम धोंधों नोवत वाजत हे ॥ ५ ॥ हिंदूपति पतसाह ऊदेपुर । जीम सिंहके राजनमें एह लावणी खूब वाई । सकल संघके सागनमें ॥ ६० ॥ संवत द्वार पच्चोत्तर वरषै । फागुण सुदि तेरश दिवसै। मंगल के दिन दीपविजयकूं दरशन परशन दो उससे ॥ ६१ ॥ कलश || बप्पय बंद || समवशरण जग शरन । तीनलोक कलिमल हरन । धुनि वरसत जलधरन । जरण पौष पावन करन ॥ जुगल धर्मनीति हरन । सब करम घ घन जरन । मोहमदन | सुकनु वरन शुद्ध चरन । इंद्र चंद्र पद जुगल सेवन । जगत विरुद तारन तरन । दीपविजय कवि - राज बाहादुर । रुषजनाथ असरन शरन ॥ ६२ ॥ रुषजनाथ महाराज सबे दुख दालि अंजन । रुषजनाथ महाराज । सबै जूप मनरंजन । शषजनाथ पृथ्वीनाथ | समस्यो बाहर धाये । रुपजनाथ पृथ्वीनाथ | मंगल नाम गवाये || दीप विजय कविराज वादपुर | खलक मुलक हाजर रहे ॥ कलिजुग जयो देव तुं । सुरनर सब कीरत कहै || ६३ ॥ इति श्री केसरयाजी की लावणी संपूर्णा ॥ ॥ अथ वीसनगर कल्याण पार्श्वनाथजीकी लावणी लिख्यते ॥ अगम अगम वाजे चोघमा । सवाइ का साहेबका || For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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