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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०७) सो० ॥ ७॥ पालक पापीये पीलीया रे, खंधकसूरीना शिष ॥ जनममरणथी गेमव्या रे, आपे मुफ आशीष ॥ सो० ॥७॥ चंरजने चालतारे, दीधो दंम प्रहार ॥ नवदीदित थयो केवली रे, ते गुरु पिण तेणी वार ॥ सो० ॥ ए॥ धनरथकारक साधनें रे, पमिलान्यो उलास ॥ मृगलो नावना लावतो रे, पोहतो स्वर्ग आवास ॥ सो ॥१०॥निज अपराध खमावती रे, मुक्यो मनथी मान ॥ मृगावतीने में दियु रे, निर्मल केवलज्ञान ॥ सो० ॥ ११ ॥ मरुदेवी गज ऊपरे रे, देखी पूत्रनी रिधि ॥ मुझने मनमाहे धस्यो रे, ततखिण पामी सिद्ध ॥ सो० ॥ १५॥ वीर वंदन चाट्यो मारगे रे, चांप्यो चपल तुरंग ॥ दर्जुर नामे देवता रे, तेह थयो मुझ संग ॥ सो० ॥ १३ ॥ प्रनु पाय पूजन नीसरी रे, मुर्गला नामे नार ॥ कालधर्म विचमां करी रे, पोहती स्वर्ग मकार ॥ सो० ॥१४॥ कायानी शोना कारमी रे, रूप किसुं अजिमान ॥ जरत श्रारीसानुवनमां रे ॥ पाम्यो केबलज्ञान ॥ सो० ॥ १५॥ आषाढचूति कलानिलो रे, प्रगट्यो जरतसरूप ॥ नाटक करतां पामियो रे, केवल ज्ञान अनूप ॥ सो० ॥ १६ ॥ दीक्षादिन काउसग्ग रह्यो रे, गजसुकमाल मसाण ॥ सोमल शीस प्रजालीयो रे, सिद्धि गयो शुल जाण ॥ सो० ॥ १७॥ गुणसागर थयो केवली रे, सांजल पृथवीचंद ॥ पोते केवल पामियो रे, सेव करै सुर इंद ॥ सो ॥ १८ ॥ श्म अनेक में ऊधया रे, मुक्या शिवपुरवास ॥ समयसुंदर प्रनु वीरजी रे, मुकने प्रथम प्रकास ॥ सो० ॥१५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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