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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२ ) स्वामी सरीख ॥ वी० ॥ १४ ॥ इम अनेक तें ऊधया । कहुं तोरा हो केता अवदात । सारकरो हिव माहरी । मनमाहें हो आणो मोरमी वात ॥ वी० ॥ १५ ॥ सूधो संजम नवि पले । नहीं तेहवो हो मुऊ दरसल नाए । पिए आधार द एतलो । इक तोरोहो धरुं निश्चल ध्यान ॥ वी० ॥ १६ ॥ मेह महीतल बरसतो । नवि जोवे हो समविषमी गम । गिरु श्रा सहि जे गुण करे | स्वामी सारो हो मोरा वंचित काम ॥ वी० ॥ १७ ॥ तुम नामें सुख संपदा । तुम नामें हो दुख जाये दूर | तुम नामें वंबित फले । तुम नामें हो मुक पूर | वी० ॥ १८ ॥ कलश ॥ * ॥ इम नगर जेशल मेरु मंण तीर्थकर चौवीसमो । सासना धीसर सिंह लंबन सेवतां सुर तरु समो | जिनचंद त्रिशला मातनंदन सकलचंद कलानिलो । वाचना चारिज समयसुंदर संथुल्यो त्रिभुवनतिलो ॥५१॥ इति अमावस्या श्री महावीर स्तवनं संपूर्णम् ॥ · * ॥ अथ चौवीस दंडक स्तवनं लिख्यते || ॥ ढाल आदर जीव क्षमा गुण आदर ए चाल ॥ ॥ पूर मनोरथ पास जिनेसर । एह करूं अरदास जी । तारण तरण विरुद तुक सांजलि | आयो हुं धरि आस जी ॥ १ ॥ पू० ॥ इस संसार समुद्र अथागे, जमियो जवजल मांहि जी । गिलगिचिया जिम आयो गिरुतो । साहिब हाथे साहि जी ॥ पू० ॥ २ ॥ तुं ज्ञानी तो पिए तु श्रागे । वीतक कहिये वात जी । चौवीसे दंरुक हुं जमियो । वर तेह विख्यात जी ॥ पू० ॥ ३ ॥ साते नरक तो इक दैरुक, For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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