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( ३२ )
स्वामी सरीख ॥ वी० ॥ १४ ॥ इम अनेक तें ऊधया । कहुं तोरा हो केता अवदात । सारकरो हिव माहरी । मनमाहें हो आणो मोरमी वात ॥ वी० ॥ १५ ॥ सूधो संजम नवि पले । नहीं तेहवो हो मुऊ दरसल नाए । पिए आधार
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एतलो । इक तोरोहो धरुं निश्चल ध्यान ॥ वी० ॥ १६ ॥ मेह महीतल बरसतो । नवि जोवे हो समविषमी गम । गिरु श्रा सहि जे गुण करे | स्वामी सारो हो मोरा वंचित काम ॥ वी० ॥ १७ ॥ तुम नामें सुख संपदा । तुम नामें हो दुख जाये दूर | तुम नामें वंबित फले । तुम नामें हो मुक पूर | वी० ॥ १८ ॥ कलश ॥ * ॥ इम नगर जेशल मेरु मंण तीर्थकर चौवीसमो । सासना धीसर सिंह लंबन सेवतां सुर तरु समो | जिनचंद त्रिशला मातनंदन सकलचंद कलानिलो । वाचना चारिज समयसुंदर संथुल्यो त्रिभुवनतिलो ॥५१॥ इति अमावस्या श्री महावीर स्तवनं संपूर्णम् ॥
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॥ अथ चौवीस दंडक स्तवनं लिख्यते ||
॥ ढाल आदर जीव क्षमा गुण आदर ए चाल ॥ ॥ पूर मनोरथ पास जिनेसर । एह करूं अरदास जी । तारण तरण विरुद तुक सांजलि | आयो हुं धरि आस जी ॥ १ ॥ पू० ॥ इस संसार समुद्र अथागे, जमियो जवजल मांहि जी । गिलगिचिया जिम आयो गिरुतो । साहिब हाथे साहि जी ॥ पू० ॥ २ ॥ तुं ज्ञानी तो पिए तु श्रागे । वीतक कहिये वात जी । चौवीसे दंरुक हुं जमियो । वर तेह विख्यात जी ॥ पू० ॥ ३ ॥ साते नरक तो इक दैरुक,
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