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( १७१ )
करतां हो करे बंध चीकणो । कप कहने केम ॥ ६ ॥ वैरा० ॥ जीवदया पाले हो । पग पग दिन समे । वरजे रातविहार | एक काय हणतां हो स श्रावर हो । लहे दुर्गति अवतार || 9 || वैरा० ॥ तप जप करणी हो दुःख हरणी करे | निरमम निरहंकार | संवेगी सोजागी हो चंद सम निरमलो । पुहचे मुगति मकार ॥ ८ ॥ वैरा० ॥ उगे अति मीठो हो लागे वाचतां । जलो धरमारथ काम । नामें सुख पामें हो जैतसी आतमा जलसे मनपरिणाम || वैरा० ॥ ए ॥ इति षष्ठाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥
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॥ अथ सप्तमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥
॥ साधु बूकोरे । जाषा सुमति विचार । जाषा चिंहुं नेदे करी ॥ सा० ॥ सच्च सच्चा मीसा समोसा चोथी कही ॥ १ ॥ सा० ॥ वोले निरवद्य वांणी सच्च सच्चामोसा वलि ॥ सा० ॥ २ ॥ जाबो जापन वेय । बीजीनें त्रीजी वलि ॥ २ ॥ सा० ॥ निचे कठिन कठोर संकित सावद्य संजवे ॥ सा० ॥ जिएथी लागे पाप । तेहवी वाणी न संजवे ॥ ३ ॥ सा० ॥ चोरनें न कहे चोर । न कहे कांणो कांणा जी ॥ सा० ॥ पर पीमा हुवे जेण । वाणी तेहवी न बोलणी ॥ ४ ॥ सा० ॥
साधुन कहे साधु । साधुनें साधु बोलाव ज्यो ॥ सा० ॥ सुरनर पसुहार जीत कहि दोष न लावज्यो ॥ ९ ॥ सा० ॥ वक्क सुधी कयण | बोल घणा बे सातमे ॥ सा० ॥ लागे जिथी पाप । मपक तूं इस वात ॥ ६ ॥ सा० ॥ दस विध बोलो साच | श्री अरिहंत आज्ञा बे इसी ॥ सा० ॥ पुण्यकलश
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