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(१५५) अहो॥धान तणो ए कीमलो । मल मूत्र मारी रेलो॥अहो ॥३॥ तीण मांहे कहो कयां थकी। एहवी श्क तारीरेखो ॥ अहो ॥ उत्तर वैक्रीय रूपें करी। चाट्यो तिण वारीरेलो ॥ अहो ॥४॥ कीधा दोय पंखी तणा । उपबुद्धि विचारीरेलो ॥ अहो ॥ ध्यान धरी बेगं तिहां । नरपति निरधारीरेलो ॥ अहो ॥ ५॥ राख राख करतो पड्यो । पारेवो तिण वारीरेलो॥ अहो॥ राजा रूमी रीतसुं । लीधो बुचकारीरेलो ॥ अहो० ॥६॥ जय मत कररे बापमा । कोय न शके मारीरेलो ॥ अहो ॥ पापी पुंठे श्रावीयो । हुलवो हीलकारीरेलो ॥ अहो ॥७॥ जद दीजे नृप माहरो। तिम खाई मारीरेलो ॥ अहो ॥ नोजन आपुं तो जणी। मीगं सुखमारीरेलो ॥ अहो ॥ ७॥ मांस विना खालं नहि । नृप जात हमारीरेलो ॥ अहो ॥जद नहि द्यो माहरो । तो हत्या हमारीरेलो ॥ अहो० ॥ ए॥ दया पिण तुजने होसी । हत्या परिवारीरेलो॥ अहो॥राजा श्रापे तेहने । निज अंग विदारीरेखो ॥ अहो ॥ १० ॥ तो पण नाण्यो चित्तमे । राय दुःख वीगारीरेलो ॥ अहो ॥ तिण वेला सुर बोलीयो । सुरवाणी सारीरेलो ॥ अहो ॥११॥ तिण वेला सुर बोलीयो । ढुं हुं आशा सारीरेलो ॥ अहो० ॥ इंज वखाण्यो तोहवो । जोहवो उपगारीरेलो ॥ अहो ॥ १२ ॥ जीवदया प्रतिपालने । निज काज सुधारीरेलो ॥ अहो ॥ राजा पहोतो मंदिरे । निज पोषो पारिरेलो ॥ अहो ॥ १३ ॥ तेरमे लव लाधी जली । दोय पदवी सारीरेलो ॥ अहो॥ तीर्थकर थया सोलमा।
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