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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३० ) निषा विकथा दूर निवारो । श्रीजीन धर्मचित्त धारोरे ॥ सु० ॥ समकितरत्न हियेमे धारोरे । नरक तणां दुःख वारोरे ॥ सु० ॥ ४ ॥ जांजे सर्वे मिथ्या धर्म । एवो निजशासन धर्म ॥ सु० ॥ श्रीचींतामणी चरण पसाये । संकट विकट ते जायरे ॥ सु० तुज पुर सहेर गुरुनी महारे ॥ कस्यो चोमास उल्लासरे ॥ सु०॥ संवत जगणीस सतोतरे वरसे । पोसती सुद दसमिरे ॥ सु० || || अंचल पूज्य पटोधर । श्रीपुण्य सिंधु सूरि रायरे ॥ मु०॥ संघन साखे मिलामि क्कम । होज्यो अधिक सवायारे ॥ सु०॥७॥ ॥ ६ ॥ जो कोइ जशे श्रवणे सांजलशे । तस घर मंगल मालरे || सु० ॥ नरकतणां दुःख वीरे जाख्यां । वीर वचन रस चाख्यारे ॥ ० ॥ 9 ॥ कहे मुक्ति कमला तस वरजो । सर्दहजो वीरजी वाणीरे ॥ सु० ॥ मिथ्यात्व प्रमाद तजो । सवी जाइजीन आणा तित लाउरे || सु० ॥ ८ ॥ ॥ अथ पंच कल्याणक स्तवनम् ॥ नमिय पयकमल सुजाव सवि जिनतणा पंच कल्याण दिए जणि जिनवरतणा । कसिए कत्तीतर्णं परिक पंचमि दि नाम संवत खयकरम तर्फे ॥ १ ॥ नेमि जिए चवण सुरजवणथी बार पठमपह जम्म बलि दिरक तसु तेरसे ॥ वीर समां वसै परिक हिव उजलै नाम सिरि सुविधि र तीज वारसि मिले ॥ २ ॥ जा० ॥ मिगसर वदिरे सुविध पंचमी जनमियो सोइ बवैरे संयमधर सुर पण मियो | दसमी दिनरे वीरे संयम यादस्यौ इग्यार सिरे पउपम पह सिवसिरि For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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