SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४८ ) sorकर्म कर्त्ता थयो रे अप्पा | नय अशुद्ध व्यवहार | तेह i नीवारो स्वपदे रे अप्पा | रमतां शुद्ध व्यवहार रे ॥ सु० ॥ सा० ॥ १४ ॥ व्यवहारे समरे थकी रे अप्पा | समरे निश्चया चार | प्रवृत्ति समारे विकल्पने रे अप्पा | तेह स्थिर परिणती सार रे || सु० ॥ सा० ॥ १५ ॥ पुद्गलने पर जीवश्री रे अप्पा | कीधो नेद विज्ञान बाधकता दूरे टली रे अप्पा | हवे कुण रोके ज्ञान रे || सु० ॥ सा० ॥ १६ ॥ आलंबन जावन वसे रे या । धरम ध्यान प्रगटाय । देवचंद पद साधवा रे अप्पा | एहज शुद्ध उपाय रे ॥ सु० ॥ सा० ॥ १७ ॥ ॥ ढाल ३ जी ॥ राग धन्याश्री ॥ थायो आयो रे । अनुजव श्रातम चो आयो । शुद्ध निमित्त आलंबन जजता श्रात्मा लंबन पायो रे ॥ ० ॥ १ ॥ तम खेत्रे गुण पर्याय विधि | तिहां उपयोग रमायो । पर परिणति पर रीते जाणी । तास fare समायो रे || श्रा० ॥ २ ॥ प्रथकत्व वितर्क शकल आरोही । गुण गुणी एक समायो । पर जय जव्य वितर्क एकता | डरधर मोह खपायो रे || ० || ३ || अनंतानुबंधी सुटने काढी । दर्शन मोह गमायो रे । तिरिगति हेतु प्रकृति दय कीधी थयो खतम रस रायो रे ॥ ० ॥ ४ ॥ द्वितीय तृतीय चोकमी खपावी । वेद युगल दय थायो । हास्यादिक सत्ताथी ध्वंसी । उदय वेद मिटायो रे ॥ ० ॥ ५ ॥ थई वेदीने अविकारी । हल्यो संजलनो कसायो । मार्यो मोह चरण क्षायक करी । पूरण समता समायो रे ॥ श्र० ॥ ६ ॥ घन घाति त्रिक योधा लमीया । ध्यान एकत्वने धायो । For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy