Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विनयश्रुत - विनय के अनुष्ठान की विधि
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कठिन शब्दार्थ - सुणिया - सुन कर, भावं - दृष्टांतों को, साणस्स - कुतिया का, सूयरस्स - सूअर के, य - और, णरस्स - मनुष्य के, विणए - विनय में, ठवेज - स्थापित करे, अप्पाणं - अपनी आत्मा को, इच्छंतो - चाहने वाला, हियं - हित, अप्पणोआत्मा के।
भावार्थ - सड़े कानों वाली कुतिया और सूअर के साथ अविनीत मनुष्य के दृष्टान्तों को सुन कर अपना ऐहिक और पारलौकिक हित चाहने वाला व्यक्ति अपनी आत्मा को विनय में स्थापित करे।
विवेचन - 'सुणिया भावं' के स्थान पर टीका में सुणिया - (सुन कर) और अभावं(अभाव - अशोभन-हीन स्थिति को) के रूप में शब्दों को अर्थ किया गया है। तदनुसार इस गाथा का भावार्थ इस प्रकार समझना चाहिए - . अपना आत्महित चाहने वाला साधु सड़े कान वाली कुतिया और विष्ठा भोजी सूअर के समान, दुःशील से होने वाले अभाव (-अशोभन-हीन स्थिति) को सुन (समझ) कर अपने आपको विनय (धर्म) में स्थापित करे।
विनय का परिणाम .. तम्हा विणयमेसिज्जा, सीलं पडिलभेज्जओ।
बुद्धपुत्त णियागट्ठी, ण णिक्कसिज्जइ कण्हुइ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - तम्हा - इसलिए, विणयं - विनय की, एसिज्जा - एषणा - आराधना करे, पडिलभे - प्राप्त करे, जओ - जिससे कि, बुद्धपुत्त - बुद्ध - आचार्य पुत्र (शिष्य), णियागट्ठी - नियागार्थी - मोक्ष को चाहने वाला, कण्हुइ - किसी स्थान से भी।
भावार्थ - इसलिए अविनय के दोषों को जान कर मोक्ष के अभिलाषी गुरु महाराज के लिए पुत्र के समान प्रिय साधु को विनय की एषणा-आराधना करनी चाहिए, जिससे सदाचार की प्राप्ति हो। ऐसा विनीत साधु कहीं से भी नहीं निकाला जाता, वह कहीं भी अपमानित नहीं होता।
विनय के अनुष्ठान की विधि णिसंते सियाऽमुहरी, बुद्धाणं अंतिए सया। अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा, णिरट्ठाणि उ वजए॥८॥
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