Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विनयश्रुत - दुःशील शिष्य का निष्कासन ************************************************************* की आज्ञा दें, उसे तो आचरण में लावे और जिस कार्य के लिए निषेध करे उसको वह सर्वथा त्याग दे। शिष्य की सारी कार्यविधि गुरुजनों की दृष्टि के सम्मुख ही रहनी चाहिए ताकि उसका कोई भी कार्य गुरुजनों की आज्ञा के प्रतिकूल न हो। विनीत शिष्य गुरुजनों की प्रवृत्ति और निवृत्ति सूचक इंगित आकार आदि चेष्टाओं के ज्ञान की भी वह अपने में योग्यता संपादन करे। नेत्र का इशारा, सिर का हिलाना और दिशा आदि का अवलोकन करना इत्यादि जो भाव सूचक मूल चेष्टाएं हैं उन्हीं के द्वारा गुरुओं के आंतरिक अभिप्राय को समझ कर उसके अनुसार आचरण करने वाला शिष्य ही वास्तव में विनीत कहा जा सकता है।
अविनीत शिष्य का लक्षण आणाऽणिद्देसकरे, गुरूणमणुववायकारए। पडिणीए असंबुद्धे, अविणीए त्ति वुच्चइ॥३॥
कठिन शब्दार्थ - अणिद्देसकरे - अस्वीकार करने वाला, अणुववायकारए - समीप न रहने वाला, पडिणीए - प्रत्यनीक - प्रतिकूल आचरण करने वाला, असंबुद्धे - असम्बुद्ध - बोध रहित, अविणीए - अविनीत।
- भावार्थ - गुरु आज्ञा न मानने वाला, गुरु के समीप न रहने वाला, उनके प्रतिकूल कार्य करने वाला तथा तत्त्वज्ञान रहित अविवेकी साधु अविनीत कहलाता है।
विवेचन - उपरोक्त गाथा में विनय धर्म के जितने लक्षण बतलाये हैं उनके विपरीत चलने वाला अविनीत कहा जाता है अर्थात् तीर्थंकरों की आज्ञा का विराधक और गुरुजनों के प्रतिकूल आचरण (बर्ताव) करने वाला ‘अविनीत' कहा जाता है। अब इसी विषय को दृष्टान्त द्वारा स्पष्ट किया जाता है
दुःशील शिष्य का निष्कासन .. जहा सुणी पूईकण्णी, णिक्कसिजइ सव्वसो।
एवं दुस्सीलपडिणीए, मुहरी णिक्कसिज्जइ॥४॥
कठिन शब्दार्थ - जहा - जैसे, सुणी - कुत्ती, पूईकण्णी - सड़े कानों वाली, णिक्कसिजइ - निकाली जाती है, सव्वसो - सभी स्थानों से, एवं - इसी प्रकार, दुस्सीलदुःशील - दुराचारी, मुहरी - वाचाल।
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