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तौ मलै प्रकार माक है । सो यह
बङ्गकैसे तजेगा, हाँसि करेगा ही। तातै रोसे धर्म भावनारहित मानी पंडितनि का भय हमको नाही। जो भय है तौ जिन आज्ञा सहित धर्मात्मा पंडित पुरुषन का है। सो इनका भय करना भी योग्य है। क्योंकि जो इस
ग्रन्ध में मेरी बुद्धि को न्यूनता करि जिन आज्ञारहित अतत्त्वसरधानरूप शब्द कोई लिख्या गया होय, तथा कोई । अशुद्ध पाप प्रवृत्ति करावनेहारा लिख्या गया होय तौ तत्त्वज्ञानी उत्तम बुद्धि के धारी जिन-भाषित तत्वनि कर
रहस्यनि के जाननेहारे उस चुक को देखि रोसा सममें जो यह जिन आज्ञारहित शब्द तथा अर्थ लिया गया है सो ऐसा सरधान कवि के होय। ऐसे सन्देहसहित विचार कदाचित् धर्मार्थी पंडित के होय तो इस बात में मैं भी उनको सरधान चूक-सा दीखू तो उन धर्मार्थिन की पांति मोहिं वाह्य-सा जाने, तौ इनसे मेरे सरधान कुंअरु शुद्ध-धर्म के सेवनेक बट्टा लागे। ताते इसका भय तौ मौकं है । सो यह धर्मात्मा सर्व ग्रन्थ के रहस्य देखि रौसा भी विचारेंगे जो सर्व ग्रन्थ का रहस्य तौ भलै प्रकार जिन आज्ञा प्रमाण है। और एक दोय चूक हैं सो श्रद्धानपूर्वक नाहों। यह कोई बुद्धि को मन्दता करि मलि मडि गया है सो ऐसा नानि सबन शुभकर लंग, परन्तु मोकों दोष नाहीं लगावेंगे। ऐसे सज्जनादि गुन के धारी विशेष ज्ञानी धर्मात्मा पुरुष हैं सो बड़े हैं, इनका भय करना ही हमको तत्वज्ञान सरधान में सहायक है तातें इन पुरुषनि का भय हमको गुणकारी है। यातै इनकी हाँ सि निन्दा का भय है ताहोते अतत्त्वसरधान में हमारा ज्ञान नहीं प्रवेश कर है सो ऐसे पुरुषनि के भय का उपकार है। तातें हमको ऐसे सजन जीवनि का भय है। जे जिन अाज्ञा रहित, जिन वचन जानिये को निरन्ध समानि, मिथ्यासरधानी, धर्म के बिछुरे, धर्म अभिलाषारहित अक्षरज्ञानी सो इन पंडितन का हमको भय नाहीं। ये मानार्थी जीव हैं सो परम्पराय कवीश्वरों की परिपाटी मेटन हारे हैं। तातें इनका भय विवेकोनिकों योग्य नाहीं। जैसे कोई जौहरी के दोय रतन थे सो वह रतन उत्कृष्ट मील के थे सो तिन रतनकों कोई ग्राहक आया बड़ा मोल देय लोये। अरु कही हम दिखाय लावें, परखाय लावें हैं। ऐसी बदानी कर गया। सो तुच्छ ज्ञानी, मूर्ख, रत्र परीक्षा के ज्ञानरहित ऐसे बड़ी उम्र के धारी घास लकड़ी के बेचनेहारे ऐसे जड़बुद्धि तिनक वह रतन दिखाया और उनसे कही—याके लाख-लाख दीनार दिये हैं। तुम बड़े पुरुष हो, घने रत्न देखे हैं सो ये कैसे हैं? तब सर्व घास के बेचनेहारे बोले है भ्रात! यह प्रत्यक्ष काँच
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