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सैतीसधी बोल-३३
विज्ञान उसमै नहीं है । मधमक्खियो में मधु उत्पन्न करने का जो विज्ञान है, वह मनुष्यो में कहाँ है ? मधुमक्खियां फूलो मे से रस ले-लेकर जैसर मधु तैयार करती है, वैसो मधु क्यर मनुष्य तैयार कर सकता है २ मधुमक्खियां मधु प्पैदा करना भी जानती हैं और मधु का संग्रह करना भी जानती हैं । सर्वप्रथम मधुमक्खियाँ छत्ता बनाती हैं और उसमें बराबर के खाने बनाकर थोडा-सा मोम लगाती है और फिर उसमें मधु भरती हैं । मधुमक्खियो की यह कलो मनुष्य के विज्ञान को भी लज्जित कर देती है । मधुमक्खियां छत्ता बनाने मे कुशल कारीगर के समान कला का उपयोग करती हैं और अपनी कुशल कारीगरी का परिचय देती हैं। इसके अतिरिक्त चे मिल-जुल कर काम करती हैं। उनकी कार्यव्यवस्था बडी सुन्दर होती है। मधुमक्खियो को एकता, सुघडता, कार्यव्यवस्था और तन्मयता आदि गुण मनुष्यसमाज को सीखने योग्य हैं।
कहने का आशय यह है कि मनुष्य को प्रत्येक काम विवेकपूर्वक करना चाहिए । जो मनुष्य विवेकज्ञान का उपयोग न करके सिर्फ खाने पीने में, नाटक-सिनेमा देखने में तथा सासारिक सुख भोगने में ही अपने जीवन की इतिश्री समझ बैठता है, उसमे और पशु मे कुछ अन्तर नही । मनुष्यो और पशुप्रो मे धर्म तथा विवेक ज्ञान का ही अन्तर है । अगर मनुष्यो मे विवेकज्ञान न हो और धर्मबुद्धि न हो तो उनमे और पशुओ में कुछ अन्तर नही.। विवेकहीन मनुष्य की अपेक्षा तो मधुमक्खिया चतुर हैं। कहना चाहिए कि विवेकहीन पुरुष से उद्यमशील मधुमक्खिया अनेक गुणा अच्छी हैं । इन मक्खियो के उद्योगमय जीवन से एक शिक्षा