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पैतालीसा वोल-१३१
होता है।
उत्तर--वीतरागता से स्नेह तथा तृष्णा के बधन छेद डालता है तथा मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द, रूप, गध, रस, स्पर्श आदि विषयो मे वैराग्य पाता है।
व्याख्यान वीतरागता सभी व-तुप्रो की अपेक्षा श्रेष्ठ है, यह बात प्रसिद्ध है, फिर भी यहा वीतरागता के फल के विषय में क्यो प्रश्न किया गया है ? वीतरागता के फल पर विचार करने से पहले इस प्रश्न का समाधान करना आवश्यक है। इस प्रश्न का समाधान यह है कि क्रिया का फल अवश्य मिलता है, यह बतलाने के लिए यह प्रश्न पूछा गया है । प्रत्येक क्रिया फलवती होती है। कोई भी क्रिया निष्फल नहीं जाती । मानो यही यही बात स्पष्ट करने के लिए यह प्रश्न किया गया है। -
जव सर्वगुणसम्पन्नता प्राप्त होती है तो वीतरागता आती ही है । और जव वीतरागता प्रकट होती है तो सर्वगुणसम्पन्नता भी होनी ही चाहिए । राग द्वेष की मौजूदगी मे सर्वगुण सम्पन्नता का प्राप्त होना जैनशास्त्र को मान्य नही है । सभव है, यह वात भी बतनाने के लिए गौतम स्वामी ने भगवान से यह प्रश्न पूछा हो ।
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है - हे गौतम । जब आत्मा राग द्वेष से रहित होकर वीतरागभाव मे आता है, तब स्नेह और तृष्णा के कारण बधने वाले कर्मबधनो का विच्छेद हो जाता है। राग का और तृष्णा का पूर्ण रूप से विच्छेद वीतरागभाव उत्पन्न होने के