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२५२-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
सीखने के लिए कौन उत्सुक नही होगा ? ऐसे लोग बहुत ही कम निकलेगे जो ऐसा मन्त्र सीखने के लिए तैयार न हो जाएँ। तो अब तुम्हे बतलाया जाता है कि तुम वचन पर काबू रखो और वचन को अशुभ से निकालकर सत्यरूप शुभ में स्थिर करो तो तुम्हे अवश्य मिद्धि प्राप्त होगी। किन्तु यह करना तुम्हें कठिन मालूम होता है । वास्तव मे वचसिद्धि प्राप्त करने के लिए वचनगुप्ति की अत्यन्त आवश्यकता है। वचनगुप्ति का पालन करने से वचनसिद्धि अवश्य प्राप्त होगी। अगर तुम वचन सत्य को स्थिर करोगे तो समस्त सिद्धियां तुम्हे खोजती आएंगी । वचनगुप्ति का पालन साधु और श्रावक दोनो के लिए उपयोगी और कल्याणकारी है। दूसरा कोई वचनगुप्ति का पालन करे या न करे, तुम अपना कर्तव्य समझकर वचनगुप्ति का पालन करो । इसी मे तुम्हारा कल्याण है । अपने कर्तव्य में दृढ रहने वाला व्यक्ति मात्मकल्याण अवश्य करता है । सकट के समय भी कर्तव्य का पालन करना ही कल्याण का मार्ग है।