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३२०-सम्यक्त्वपराक्रम (५) के वे शस्त्र सरीखे पुद्गल आपस में टकराते हैं और फलस्वरूप संग्राम मच जाता है। शास्त्र में कहा है कि कषायसमुद्घात से भयङ्कर सग्राम हो जाता है । क्रोध हो तो सग्राम होता ही है। इसीलिए शास्त्रकार ऊँचे स्वर मे कहते है-क्षमा के द्वारा क्रोध को जीतो । अगर तुम्हारे भीतर क्षमाभाव होगा तो दूसरे का क्रोध आप ही शात हो जाएगा। परन्तु लोग थप्पड़ का जवाब चूंसे से और गाली का उत्तर गाली से देना चाहते हैं । नतीजा यह होता है कि रगड़ेझगड़े बढते हैं । शास्त्रो मे और ग्रन्थो मे कहा है कि वैर से वैर बढता है और क्रोध करने से क्रोध अधिक-अधिक बढता जाता है। अतएव क्रोध का जवाब क्रोध से न देकर
और गाली का वदला गाली से न देकर क्षमा द्वारा क्रोष को जोतना चाहिए । इसी मे अत्मा का कल्याण है । कहा भी है:
दोधा गाली एक है, पलटे होय अनेक । जो गाली पलट नहीं, रहे एक की एक ।
अर्थात् किसी ने किसी को गाली दी और गाली खाने वाला अगर वदले में गाली नहीं देता है तो वह गाली एक की एक ही रह जायेगी और गाली देने वाला आखिर शान्त हो जाएगा । इससे विपरीत, अगर गाली का बदला गाली से दिया गया तो गालियो की परम्परा वढतो ही जायेगी और झगड़ा हुए विना नही रहेगा । अतः क्रोध उत्पन्न होने पर उसे क्षमा से जीतना उचित है । शास्त्र में साधु के लिए तो यहां तक कहा है कि-- हे साधु ! अगर किसी के साथ तुम्हारा क्लेश हुआ है तो जब तक तुम उसे उपशात नही कर लेते, तब तक तुम आहार-पानी लेने के