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३६४-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
नाश करते हैं, यह बतलाते हुए शास्त्र में कहा गया है कि
अपने राग-द्वेष तथा मोहरूप सकल्पो का स्वरूप विचारने में उद्यत उन वीतराग पुरुष को क्रमशः समता प्राप्त होती है। फिर विषयो का सकल्प हट जाने पर उनकी काम-गुणो की तृष्णा भी निवृत्त हो जाती है ।
इस प्रकार वीतराग होकर कृतकृत्य हुए उन पुरुष के ज्ञानदर्शन को आच्छादित करने वाले तथा अन्य अन्तरायक कर्म क्षण भर मे क्षीण हो जाते हैं और तब वह सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी बन जाते हैं ।