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उपसंहार-३७६
सकते हैं। इसी प्रकार अगर तुम भगवद्-वाणी का यथावत् पालन नहीं कर सकते तो उस पर श्रद्धा रखो और जितना बन सके उतना पालन करो।
प्रश्न किया जा सकता है कि हमें किस धर्म पर श्रद्धा रखनी चाहिए ? आप जो कहते हैं वही दूसरे लोग भी कहते हैं। ऐसी दशा में किस धर्म पर श्रद्धा रखनी चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर यह हैं कि पाठशालाएं अलग-अलग होने पर भी कुछ बाते ऐसी होती हैं जो प्रत्येक पाठशाला मे एक समान मानी जाती हैं। उदाहरण के लिए-पांच और पाच दस होते हैं, यह बात प्रत्येक पाठशाला में समान रूप से सिखलाई जाती है । अन्य बातो मे मतभेद हो सकता है मगर इसमे किसी प्रकार का मतभेद सम्भव नही है। इसी प्रकार वीतराग भगवान् के कहे हुए कुछ तत्त्व ऐसे हैं जो सबको समानरूप से मान्य हैं । उनके विषय में किसी का मतभेद नही है । दूसरे जो सिद्धान्त हैं उनकी अन्य मतो के सिद्धान्तों से तुलना करके देखो और विवेक-बुद्धि द्वाग उन पर विचार करो। तुम्हे स्पष्ट ज्ञान हो जायेगा कि वीतराग भगवान का कथन ही यथार्थ है। वीतराग भगवान् के कथन पर ही श्रद्धा रखनी चाहिए। इसके अतिरिक्त अन्य मतो में भी अगर कोई अच्छी बात है तो वह भी अपने लिए ग्राह्य है । दूसरो के नय की उत्थापना न करके अपने नय की स्थापना करना ही स्याद्वाद कहलाता है । स्याद्वाद सातों नयों को स्वीकार करता है । वह सातो का संग्रह करके यथार्थ वस्तुस्वरूप को प्रकाशित करता है । स्याद्वाद किसी नय का निषेध नहीं करता । इससे विपरीत अन्य लोग कोई एक बात पकढ़ बैठते हैं और दुराग्रह करते हैं । जैनदर्शन