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उपसंहार-३८१
___ इस प्रकार और भी अन्धे एक-दूसरे को झूठा कहने लगे और आपस में झगडने लगे । इतने में वहां एक आंख वाला मनुष्य आ पहुंचा । आँख वाले ने उन अन्धों से कहातुम लोग आपस में लडते क्यो हो ? तुम सब एक-एक अश मे सही कहते हो । पर जब सबकी मान्यताओ का समन्वय करोगे तभी हाथी का परिपूर्ण स्वरूप समझ में आएगा ।
आखिरकार उस आंख वाले पुरुष ने उन अन्धो को हाथी के एक ही अग को हाथी मान लेने से कैसी भ्रमणा उत्पन्न होती है, यह बात समझाई और यह भी समझाया कि किस प्रकार सबके मन्तव्य का समन्वय करने से पूर्ण वस्तु का पता चलता है ।
इस दृष्टान्त का सार यह है कि जो व्यक्ति अन्धों की तरह वस्तु के एक अश को स्वीकार करके अन्य अशों का सर्वथा खंडन करता है और अंश को पकड रखने का आग्रह करता है, वह मिथ्यात्व मे पड़ जाता है। दूसरे नयों का निषेध करने वाला व्यक्ति स्वय जिस नय का अवलम्बन करता है, उसका वह नय दुर्नय बन जाता है । अतएव अपनी ही बात का हठ न पकडकर दूसरो के कथन पर भी सम्यक्प्रकार से विचार करना चाहिए और विवेन के साथ पूर्वापर विचार करके सत्य वस्तु पर श्रद्धा रखनी चाहिए। यही सम्यक्त्व है। पुण्योदय होने पर ही सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है । स्याद्वाद सिद्धान्त किसी किस्म का दुराग्रह न करके यह मानने का उपदेश देता है कि जो सच्चा है सो मेरा, यह नही कि मेरा सो सच्चा । अतएव सम्यक्त्व प्राप्त करके मोक्ष की सिद्धि के लिए पुरुषार्थ करो । सम्यक्त्व में पराक्रम करना ही मोक्षप्राप्ति का राजमार्ग है ।