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३८०-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
किसी बात का दुराग्रह नही करता । वह सबकी दृष्टि का यथोचित समन्वय करके पदार्थ का निरूपण करता है। अन्य मत जब पदार्थ का निरूपण एक हो दृष्टि से करते हैं, तब जैनदर्शन को सभी दष्टियाँ मान्य हैं । यह बात समझने के लिए एक उदाहरण लोजिए। इससे जैनवम की विशालता और मौलिकता का पता चलेगा
किसी गाव मे एक हाथी आया । उसे देखने के लिए गाव के लोग जमा हो गए । उस गाव में कुछ अन्धे भी रहते थे । वे भी हाथी देखने चले । रास्ते में किसी ने उनसे कहा-तुम्हारे पाखें नहीं हैं, हाथी कसे देख सकोगे ? अन्धो ने कहा-हम हाथ फेरकर हाथी देख लगे ।
अन्धे हाथी के पास पहुंचे और हाथ फेर कर उसे देखने लगे। एक अन्धे के हाथ मे हाथी का दान पाया। वह कहने लगा- मैं समझ गया, हाथो कैसा होता है ! हायो मूसल जैसा होता है। - दूसरे अन्धे के हाथ मे हाथी की सूड आई । वह पहले अन्धे से कहने लगा तेरा कहना गलत है । ह थी मूसल जैसा नही, कोट की बाइ सराखा होता है।
तीसरे अन्धे के हाथ मे हाथी का पैर आया। उसने कहा-तुम दोनो झूठे हो । हाथी खम्भा सरीखा है।
चौथे के हाथ हाथी का पेट लगा । वह बोला -तुम तीनो भूठ कहते हो हाथी तो कोठी सरीखा होता है ।
पाचवें अन्धे के हाथ मे हयी के कान आये । वह बोला- तुम सभी झूठे हो । हाथी तो सूप ( छाजला ) सरीखा है।