________________
३७२-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
सकडालपुत्र ने बर्तनो के बनने का क्रम बतलाते हुए कहा-जगल से मिट्टी लाया । फिर उसमे दूसरी चीजो का मिश्रण करके मिट्टी का पिंड बनाया। उसे चाक पर चढाया और तब वर्तन बनाये है ।
भगवान् ने कहा- यह वर्तन उत्थान आदि से ही बने हैं न ?
सकडाल- नही, होनहार ही होता है । भगवान-अगर कोई तुम्हारे बर्तनो को फोड डाले तो?
सकडाल- मेरे वर्तन फोडने वाले को मैं बिना मारे नही छोडूंगा । मैं उसके हाथ-पैर तोड दू गा।
__ भगवान-सकडाल ! तुम उसे इतना दण्ड क्यो दोगे? तुम्हारे हिसाब से तो होनहार ही होता है, फिर तुम दण्ड क्यो दोगे ? तुम्हे अपने मतव्य के अनुसार तो यही मानना चाहिए कि लकडी के सयोग से बत्तन फूटने वाले थे सो फूट गए।
भगवान् का यह कथन सुनकर सकडालपुत्र विचार में पड गया। इतने मे ही भगवान् ने उसके सामने दूसरा उदाहरण उपस्थित करते हुए कहा- हे सकडालपुत्र । कल्पना करो, तुम्हारी पत्नी सिंगार करके बाहर निकली और कोई पुरुष उस पर बलात्कार करना चाहता है तो तुम क्या करोगे ?
सकडालपुत्र ने कहा-मैं ऐसे दुष्ट पुरुष के नाक-कान काट लूंगा, यहा तक कि उसे प्राण दण्ड देने का भी प्रयत्न करूँगा।