Book Title: Samyaktva Parakram 04 05
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 403
________________ बहत्तर-तेहत्तरवां बोल-३७३ भगमन-हे सकडालपुत्र ! तुम्हारे मत के अनुसार तो होनहार ही होता है। फिर तुम्हे उस दुष्ट पुरुष को दण्ड Eler देना चाहा युक्तिसंगत ने कहा भगवान् की युक्तिसगत वाणी सुनकर सकडालपुत्र को बोध हो गया। उसने भगवान् से कहा-'भगवन् ! मैं धर्म श्रवण करना चाहता हूं।' भगवान् ने उसे धर्म का श्रवण कराया । भगवान् की धर्मवाणी सुनकर वह बारह व्रतधारो श्रावक बन गया । जब तक सकडालपुत्र धर्मतत्त्व को समझा नही था तब तक उसमे मताग्रह था । जब उसे वास्तविक धर्मतत्त्व का बोध हा तो उमने नियतिवाद का त्याग करके पुरुषार्थवाद का सत्यधर्म स्वीकार किया । सकडालपुत्र कुम्भार था, फिर भी भगवान् ने उसे श्रावक बनाया। क्या ऐसा करना ठोक था? उन्होने कुम्मार को श्रावक बना कर ससार के सामने आदर्श उपस्थित किया कि कोई किसी भी वर्ण या जाति का क्यो न हो, शरीर से छोटा या मोटा क्यो न हो, मुझे किसी के प्रति, किसी भी प्रकार का पक्ष नही है । मैं सबका कल्याण चाहता हूँ। भगवान् के इस कथन पर तुम भी थोडा विचार करो । गोशालक ने सुना कि सकडालपुत्र ने मेरा मत त्याग दिया है। उसे फिर अपने मत का अनुयायी बनाने के लिए गोशालक उसके पास पहुचा गोशालक ने विचार कियासकडालपुत्र तो महावीर भगवान का पक्का श्रावक बन गया है । तब उसने भगवान् की प्रशसा करना आरभ किया । गोशालक ने सकडालपुत्र से कहा- 'क्या यहां महामाहण, महायान, महानिर्यामिक, महागोप तथा महासार्थवाह आये थे ?'

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