Book Title: Samyaktva Parakram 04 05
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 405
________________ उपसंहार सम्यक्त्वपराक्रम नामक २६ वां अध्ययन समाप्त हो रहा है। इस अध्भयन की समाप्ति करते हुए कहा गया है मूलपाठ एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स प्रज्झयणस्स अट्ठ समणेण भगवया महावीरेणं आधविए, पन्नविए, परूविए, दसिए, उवदंसिए । ७४ । ति वेमि । इन सम्मत्तपरक्कमे अज्म यणे समत्ते। शब्दार्थ इस सम्यक्त्वपराक्रम नामक अध्ययन का अर्थ श्रमण भगवान् नहावीर ने सामान्य में विशेष और विशेष में सामान्य निरूपण करके हेतु, फल आदि के द्वारा प्रकाशित किया है, उसका स्वरूप बतलाया है उपदेश दिया है. दृष्ट न्त आदि द्वारा समझाया है और उसका उपसहार किया है । व्याख्यान इस सूत्रपाठ के साथ ही यह अध्ययन समाप्त होता है। इस अध्ययन मे सम्यक्त्व के विषय मे पराक्रम करने

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