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३७६-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
को कहा गया है । यह बतलाया गया है कि सम्यक्त्वपूर्वक किये गये पराक्रम का फल क्या होता है ? समकित अर्थात सच्ची श्रद्धा होने पर ही सव पराक्रम सार्थक होते है । जैसे एक का अक हो तो ही शून्य का महत्व होता है- अकेले शून्य का नही, इसी प्रकार समकितपूर्वक किया गया पराक्रम ही मुक्ति के लिए सार्थक होता है। कहा भी है
एका से शून्य दस गुनी, एका विन सब शून्य । जा घर एका पाइए, वांका भारी पुण्य ।।
अर्थात्-एक (१) प्रक पर शून्य (०) हो तो वह ___ एक को दस बनाता है, पर अक के बिना अकेले शून्य का
कोई महत्त्व नही है। इसी प्रकार मोक्ष प्राप्ति के लिए किये गये पराक्रमो का मूल्य तभी है जब वह पराक्रम सम्यक्त्व. पूर्वक हो । समकित के अभाव में सभी पराक्रम व्यर्थ हैं ।
एक का अक होने पर भी इस बात का खास तौर पर ध्यान रखना पड़ता है कि शून्य उसके प्रागे लगाया जाये या पीछे । इसी प्रकार सम्यक्त्व होन पर भी इस बात का विचार करना आवश्यक है कि पराक्रम किस प्रकार किया जाये ? इस अध्ययन मे' यही विचार किया गया है कि सम्यक्त्व मे किस प्रकार पराक्रम करना चाहिए। श्रमण भगवान महावीर ने अर्थरूप से यह अध्ययन फर्माया है और गणघरो ने सूत्ररूप मे इसे ग्रथित किया है। इसमें जो कुछ भी कहा गया है वह सम्यवत्व मे पराक्रम करने के लिए ही । सम्यक्त्व प्राप्त करने के बाद किस प्रकार पराक्रम किया जाये, जिसमे सरलतापूर्वक मोक्ष प्राप्त हो सके, यही अध्ययन का प्रतिपाद्य विषय है।