Book Title: Samyaktva Parakram 04 05
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 397
________________ बहत्तर-तेहत्तरवा बोल-३६७ ससार-भ्रमण का अन्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार राग-द्वेष तथा मिध्यादर्शन को जीतने से परपरा से तो मोक्ष की प्राप्ति होती है परन्तु प्रारम्भ में ही तेरहवां गुणस्थान प्राप्त होता है । तेरहवा गुणस्थान मोक्ष-महल की अन्तिम सीडी है । वहा पहुंचने के बाद अवश्य ही मोक्ष प्राप्त हो जाता है । बारहवें और तेरहवें गुणस्थान का वर्णन लगभग समान हैं, क्योकि दोनो गुणस्थान का वर्णन लगभग समान है, क्योकि दोनो गुणस्थान क्षायिक भाव के हैं । मोह का क्षय होने पर ही बारहवें गुणस्थान की प्राप्ति होती है । अतएव प्रात्मा का वहां से पत्तन नही होता, किन्तु तेरहवें चौदहवे गुणस्थान पर आरूढ होकर आखिर मोक्ष प्राप्त करता ही है । इसलिए राग द्वेष जीत लेने के बाद क्या करना चाहिए, इस सम्बन्ध में कोई प्रश्न नही किया गया है, क्योकि सगादि को जीतने वाला मोक्ष प्राप्त करता ही . है और इसी कारण यही अन्तिम प्रश्न है। राग द्वेष पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त करने से केवलज्ञान प्राप्त होता है फिर तेरहवें गुणस्थान की जघन्य या उत्कृष्टजितनी स्थिति होती हैं, उसमे से अन्नर्मुहूर्त आयु शेष रहने पर वे वीतराग पुरुष योग का निरोध करते हैं । सबसे पहले प्रतिपत्ती शुक्लध्यान का तीसरा चरण धारण करके पहले पहल मनोयोग कर निरोध करते हैं । भन सज्ञी पचे. न्द्रिय को होता है। इस मनोयोग मे जघन्य योग समझना चाहिए । मनोयोग के असख्यात भेद करके प्रत्येक समय में प्रत्येक भेद कर निरोध करते हैं और असख्यात समयो में सम्पूर्ण मनोयोग का निषेध हो जाता है । वचनयोग में भी

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