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___३५०-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
कल्याण का यह सुयोग प्राप्त हुआ है । इस सुयोग को तथा न जाने देकर परमात्मा का नामसकीर्तन करके आत्महित साध लेना चाहिए। परमात्मा के नाम-सकीर्तन का महत्व कुछ कम नही है । शास्त्र में कहा है :
तहारूवाण अरिहंताण भगवंताण नामगोयं सवणयाए वि महाफल ।
अर्थात्-तथारूप अरिहन्त भगवान् के नाम-गोत्र का श्रवण करने से भी महान् फल प्राप्त होता है । इस महान् फल की प्राप्ति सरलतापूर्वक हो सकती है, पर लोग परमात्मा का नामकीर्तन न करके फिजल कामो मे समय का दुरुपयोग करते हैं। लोग रेल मे बैठकर एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं । उस समय रेल मे कोई खास काम नहीं रहता । फिर भी लोग क्या परमात्मा का स्मरण करने मे वह समय लगाते हैं ? उस समय मे परमात्मा का नामस्मरण किया जाये तो क्या हानि हो सकती है ? ऐसा न करने का कारण नामस्मरण के प्रति उनकी लापरवाही है । मैं तुम सवको परमात्मा का नामस्मरण करने का उपदेश देता हूं। परन्तु जब तक तुम्हारे आत्मा में जागति न आये तब तक सिर्फ मेरा उपदेश क्या असर कर सकता है ? जमीन में वीजारोपण करने पर वर्षा हो जाये तो बीज उग सकता है । अगर बीजारोपण ही न किया हो तो वर्षा होने पर भी उससे क्या लाभ है ? अतएव मुझे तुमसे यही कहना है कि अपने अन्तरात्मा में परमात्मा का नाम-कीर्तन करने की जागति उत्पन्न करो । लोभ का त्याग करके परमात्मा का नाम-सकीर्तन करने से आत्मा का कल्याण हुए विना नही रहेगा।