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३५६-सम्यक्त्वपराक्रम (५) तो हमें सिर्फ कुछ पैसे देकर ही छुटकारा नही पा लेना चाहिए, वरन् उसका भिखारोपन दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए । भिखारी पर दया करके तुमने पैसे का ममत्व त्याग किया है, सो तो ठीक है मगर तुमने सच्ची दया का परिचय नही दिया ।
पहले मित्र को इस प्रकार कह कर दूसरा मित्र उस लँगडे भिखारी को अपने घर ले गया और बनावटी पैर लगाकर उसे इस योग्य बना दिया कि वह चलने-फिरने में समर्थ हो गया । इनके वाद उमे क ई काम सिखला कर ऐसा बना दिया कि उसे भीख न मांगनी पड़े ।
इस घटना पर विच र करो । सोचो कि दोनो में से किसकी अनुकम्पा अच्छी और ऊचा है ? इस प्रश्न का यही निश्चित उत्तर मिलेगा कि जिसने राग द्वेष को जीतने का विशेष पुरुपार्थ किया है, उसी की दया उच्च है शास्त्र की दष्टि से एकेन्द्रिय या पचेन्द्रिय प्राणी मे जीवत्व की अपेक्षा से कोई भेद नही है । परन्तु जितनी दया बडे प्राणियो पर की जाएगी, उतना अधिक राग द्वप जोतना पड़ेगा ।
कहन का आशय यह है कि लोग रा द्वष को जोन ने की बात तो करते हैं, मगर सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र की पाराधना होने पर ही माना जा सकता है कि राग द्वेष पर विजय प्राप्त की गई ऊपर से राग दृप को जीतने को बात करना और भीतर-भीतर क्रोध करना या द्वष से जलना राग-द्वेष जीतने का चिह्न नही है । प्रात्मा भीतर से भी शात हो और बाहर से भी शात हो, तभी राग-द्वष पर विजय पाना कहा जा सकता है ।
एक आदमी ने तीन आदमियो को गाली दो । गालो