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सत्तरवां बोल- ३४७
श्राज केवल कहने का जमाना नही रहा । अब कार्य कर दिखाने का समय आ गया है । इसलिए तुन सुनने या कहने मे ही न रहो वरन् आत्मा का कल्याण करने वाले कार्यो मे लगो । पूज्य श्री श्रीलाल जी महाराज कहा करते थे - अपना शरीर नष्ट करने के लिए तो एक सुई को आवश्यकता रहती है, परन्तु दूसरों का शरीर नष्ट करने के लिए तलवार, बन्दूक आदि बड़े शस्त्रो की जरूरत पड़ती है । इसी प्रकार जब दूसरो को उपदेश देना हो तो हेतु - दृष्टान्त आदि की आवश्यकता रहती है परन्तु जब अपनी ही आत्मा का कल्याण करना हो तो अधिक कहने की आवश्यकता नही रहती सिर्फ आत्मा को सरल बना कर आत्मा का कल्याण करने वाले अनुष्ठान करने की ही आवश्यकता होती है ।
यहा एक प्रश्न उपस्थित होता है कि जब परमात्मा का नाम सकीर्तन करने से ही आत्मा का कल्याण हो सकता है तो फिर लोभ को जीतने के विषय में भगवान् से क्यों प्रश्न किया गया है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि लोभ को जीतने से ही परमात्मा के नाम का सच्चा संकीर्तन हो सकता है । लोभ मे पड़े हुए लोग परमात्मा का सकीर्तन करते-करते दूसरे प्रलोभनो मे फँस जाते है और तुच्छ वस्तु
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के लिए महान् वस्तु का त्याग कर देते हैं । जैसे मूर्ख मनुष्य थोडे से लाभ के बदले कीमती वस्तु का त्याग कर देते हैं, उसी प्रकार बहुत से लोग नौ निदानों में से किसी प्रकार के निदान ( नियाणा ) द्वारा अपनी धर्मक्रिया बेच डालते है । जब लोभ जीत लिया जायेगा तो इस प्रकार की भूल नहीं होगी । लोभ-विजयी पुरुष महान् परिश्रम से प्राप्त वस्तु