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३२८-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
गया । आखिरकार रोग से परेशान होकर वह फिर वैद्य के पास पहुंचा और बोला - 'इन्जेक्शन देना हो तो भले दे दीजिये मगर इस भयङ्कर रोग को शात कीजिये ।'
वैद्य ने कहा- अब यह रोग इन्जेक्शन से भी नहीं मिट सकता । रोग बहुत बढ गया है। अब तो ऑपरेशन करना पडेगा । पहले इन्जेक्शन लगवा लिया होता तो मिट सकता था ।
ऑपरेशन की बात सुनकर रोगी घबराया । वह वैद्य से कहने लगा-ऑपरेशन करने के लिए मेरा जो नही चाहता।
वैद्य ने कहा - जैसी तुम्हारी मर्जी ! - रोगी का रोग दिन-दिन बढता गया । वह वेहद परे। शान हो गया । तब वह फिर वैद्य के पास पहुचा । बोलावैद्यराज ! इन्जेक्शन या ऑपरेशन--जो कुछ करना हो करो, मगर मुझे इस महामुसीबत से उबारो।
वैद्य ने फिर भारीर की जाच की। उसे मालूम हुआरोगी का सारा शरीर सड़ गया है। अब सारे शरीर को चीरना पडेगा । उसन रोगी को अपना विचार बतलया । अग की शस्त्रक्रिया करानी पड़ेगी यह सुनकर रोगी बहुत घबराया और बोला मैं अपने प्रिय शरीर पर शस्त्रक्रिया कैसे करा सकता हूँ !
वैद्य ने अन्तिम चेतावनी देते हुए कहा- अभी तो अग चीरने से ही शरीर ठीक हो सकता है, लेकिन बाद में अग चीरने पर भी ठोक नही होगा । यह रोग ही ऐसा भयङ्कर है कि फिर वह प्राण लिए विना शात नही होगा।
अब अगर रोगी को अपने प्राणो की रक्षा करनी है